A Thread #UnionExposed on #BankMerger #Hypocrisy

लाल झंडे वाले यूनियन नेताओं ने 1991 में देशहित, बैंक हितों को ध्यान में रखते ही 7-8 बड़े बैंको को बनाये जाने की मांग की और बैंको के विलय का समर्थन किया।

उनके राष्ट्रीय सेमिनार 1991 में लिखी हुई बातें पढ़े 👇
पर जैसे ही मोदी सरकार ने सबसे पहले SBI बैंको के विलय की घोषणा की, यही यूनियन अपने मांग से पलट गए और #BankMerger का विरोध शुरू कर दिया।
बैंक हड़ताल करवाई, स्टाफ की सैलरी कटवाई। BOB के विलय का भी विरोध किया और अब Mega मर्जर का भी विरोध, हड़तालें करवा रहे।

जबकि युवा बैंकर खुश थे।
अब उसी लाल झंडे वाले यूनियन के 80 वर्षीय सेवानिवृत दलाल नेता कह रहे कि बैंक का विलय मक्खन की तरह चल रहा है, समस्या नहीं है।

पहले खुद #BankMerger विरोध में हड़तालें कराई, अब अचानक से हुए हृदय परिवर्तन का क्या राज है?

सवाल बनता है कि क्या बड़ा डील हुआ है इनके आकाओं के बीच मे,
याद दिलाता जाऊं, ये वही नेता है जिसने जेट एयरवेज के कर्मचारियों की सैलरी के लिए बैंक से फण्ड देने की वकालत की थी जबकि खुद 12 लाख बैंकर्स का वेतन बढ़ोतरी #938Days से लंबित पड़ा हुआ है।

और ये लाल झंडे वाली यूनियन उसके सेवानिवृत नेता , बैंकर को छोड़, दूसरे की दलाली करते है।
IBA इंडियन बैंक संघ ने 19/4/07 में कोर्ट को खुद बताया है कि भले ही बैंक यूनियन पदों पे सेवानिवृत नेता बैठे हो, पर बैंक मैनेजमेंट के साथ समझौता वार्ता में बैठने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है।

फिर कैसे पिछले 20 वर्षों से एक सेवानिवृत नेता, बैंकर की वेतन बढ़ोतरी का दलाली कर रहा है?
IOB Oct'13 कोर्ट केस में जजमेंट में ये लिखा गया है कि बैंक यूनियन के पदों और वार्ताओं में सिर्फ सेवा में कार्यरत कर्मचारी ही भाग ले न कि सेवानिवृत या बैंक के बाहर का 3rd पार्टी।

वो जमाना गया जब वर्कर इतने सक्षम नहीं थे आवाज उठाने को, पर अब वो अपने अधिकारों को लेकर जागरूक है।
कोर्ट ये भी लिखता है कि बहुत बार ऐसा देखा गया है कि बाहरी लोग राजनीतिक रूप से बैंक यूनियन में दवाब बना कर उन्हें हड़ताल और विरोध करने का दवाब बनाता है जो कि देश हित मे नहीं है।

इसलिए सिर्फ सेवारत कर्मचारी ही यूनियन चलाये। पर लाल झंडे वाले यूनियन ने इस आदेश की धज्जियां उड़ाई।
इनके 80 वर्षीय सेवानिवृत नेता सीपीआई से जुड़े हुए है और बैंक यूनियन के सम्म्मेलनो में विशेषज्ञ ना बुला कर कन्हया कुमार को आंमत्रित करते है उनके साथ मंच साझा करते है।

जो कोर्ट के राजनीतिक दवाब द्वारा हड़ताल बुलाये जाने की बात को सच साबित करता है। और अभी भी यही हो रहा है।
जजमेंट ये भी लिखता है कि अगर बाहरी और सेवानिवृत नेता यूनियन का बागडोर संभाले तो वो यूनियन के अधिकारों का गला घोंटता है।

सिर्फ सेवारत कर्मचारी ही बैंकर्स के असली मुद्दे और उनका दर्द को इस बदले माहौल में समझ सकता है और अच्छा संचालन कर सकता है।

पर ये अभी भी 11BPS में बैठा हुआ है।
मैं @nsitharaman @PMOIndia @narendramodi से आग्रह करता हु की इस यूनियन नेता/दलाल पे देशद्रोह का मामला चला कर कड़ी सजा देने का एलान करे।

वरना ये लाल झंडे का नेता, लाखो बैंक कर्मियों के साथ देश की बैंकिंग व्यवस्था भी चौपट करने में सडयंत्र करता रहेगा।

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