जानकी देवी संग मेला!

ए जानकी देवी! ले चलेंगे मेला दिखाने आपको अपने संग अपनी साइकिल पे बिठा के! आपके एक हाथ में झोरा होगा और दूजे से आप बांधी रहेंगी हमारी कमर! हमारे गाँव में दिवाली के बाद पहले मंगल को बिसुन बाबा का मेला लगता है। हर बरस! आप चढ़ाना कढ़ाही और पूड़ियाँ तलना!
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साथ घुमाएँगे आपको मेले की हर एक दुकान, जिसमें छुपी होंगी अनगिनत कहानियाँ! आपको खिलाएँगे वहाँ की महरुन रंग की जलेबियाँ और ठेले पे लगी चटकोरि मिर्च वाली चाट! साथ में झूलेंगे झूला! हमारे पास फ़ोन तो होगा नहीं उस वक़्त तो सेल्फ़ी भी नहीं ले पाएँगे! झुरमुट किसान सी होगी अपनी ज़िंदगी!
जिसमें ज़रूरत के नाम पर हम दोनो ही होंगे एक दूसरे के लिए। हमेशा।

आपको दिलाएँगे लाल रिबन, और बालों की चुटिया बनाकर बाँध देंगे। आपके चटक गमकते हुए लाल वाले सूट पे और भी सूट करेगी! ख़रीदेंगे एक कजरौटा जिसके काजल के झरोखे से आप हमको ताका करोगी और हम मंद मंद मुसकाया करेंगे!
ले चलेंगे उस दरिचे पे जहाँ बोरिया बिछाए बैठा होगा एक किताब वाला! वहाँ से दिलाएँगे आपको एक सोहर वाली किताब! जिसको आप गाया करेंगी चूल्हे पे रोटियाँ सेकते हुए!

लाएंगे एक रेडियो, जिसके विविध भारती के गाने सुन आंगन गमकाएंगी और
जब रोमांटिक मूड(खटिया पे हमारे काँधे पे सिर रखे हुए) में होगी, तब हमारे लिए भी गाएंगी। एक पोस्टर ख़रीदेंगे जिसमें बनी होगी दो कलाई, जिससे गिरते होंगे गुलाब के फूल और बीच में लिखा होगा “Welcome”
आप झट से सोनार की दुकान के बग़ल लगी मेकअप की दुकान पे जा ख़रीद लेंगी एक डिब्बी “आलता” और रंग लोगी अपनी एड़ियाँ! एक पत्ता फिरोज़ी बिंदी जो आपकी बड़ी बड़ी आँखों के साथ क़हर ढाएगा!

जानकी देवी जी आप मशगूल रहोगी उस 4*6 के आइने में और नारंगी होंठलाली को अपने होंठों पर रगड़ कर
उसकी दुर्दशा कर रही होगी! हम अचानक से आकर हाथ रखेंगे आपके काँधे पर और आप जिज्ञासा से पूछोगी के “बिना बताए कहाँ चले गए थे आप?” और जवाब आएगा “बिना होंठलाली के होंठ ज़्यादा ख़ूबसूरत दिखता है आपका” फिर आप इतरा के माँगोगी पैसे उस होंठलाली, बिंदी,शीशे और आलता के और
हम इशारा करेंगे के चलो अब घर चलते हैं!

वापसी में हमरी हैंडिल पे टंगा होगा समान से भरा एक झोरा और पीछे कैरियर पर हमारी कमर को थामे हुए आप! ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर आपके संग सफ़र होगा और भी रोमांटिक और ख़ुशी से बीच बीच में चुपके से आप चूम लिया करेंगी हमारी पीठ!
अंधेरा होते होते हम पहुँच जाएँगे घर! आप गरमा के लाएंगी सुबह की रोटियाँ और प्याज़! एक ही थरिया में भरेगा हमारा पेट!

हम लगाएँगे मच्छरदानी अंगना में खटिया पर और चूम के आपका माथा तारों को साथ गिनेंगे, जुगनुओं को पहचानेंगे और सियारों पर चिल्लाएँगे!
सुबह उठ के आप जमीन पे चलने के लिए कदम बढ़ाएंगी तो “छन-छन” करती सोने की पोलिश चढ़ी पीतर की पायल अपने पैरों पे पाएंगी और वापिस हमारे सीने पे सर रख के पूछोगी-

“बिना बताए कहाँ चले गए थे आप?”

और विविध भारती में बज रहा होगा-

"जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना.."
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