Might is still the right. This we must remember. Its no use deceiving ourselves by sanctimonious phrases. - Rashbehari Bose

रासबिहारी बोस को उनकी जयंती पर नमन #RashbehariBose
आज भी जब आज़ाद हिंद फ़ौज की बात होती है तो सब से पहले सुभाष चंद्र बोस का नाम ही याद आता है, लेकिन एक दूसरे बोस भी थे जिन्होंने इस संगठन की नींव डाली, और जिनके बारे में भी हमारी पुस्तकों में कुछ ज़्यादा लिखा नहीं गया, आइए आज जाने “रासबिहारी बोस” को उनकी जयंती पर....
म्यांमार के पूर्व प्रधान मंत्री थकिन नू ने कहा था “श्री रासबिहारी बोस की कहानी स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यदि नेताजी आंदोलन में गैरीबाल्डी के रूप में लड़ाई में उतरे, तो संग्राम में राशबिहारी का योगदान माज़िनी की तुलना में अधिक था "
जनमानस की स्मृति से लगभग विस्मृत हो चुके महान क्रांतिकारी, राशबिहारी बोस, मुख्य रूप से इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (आईआईएल) बनाने और जापान में भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप देने लिए जाने जाते हैं।
किसी भी दृष्टिकोण से, यह भारतीय इतिहास के सबसे निस्वार्थ कृत्यों में से है क्योंकि 1915 से लगभग 3 दशकों तक जापान में राशबिहारी ने लगन से इस संगठन को खड़ा किया और सुभाष बाबू से एक बार मिलने के बाद उस संगठन को उन्हें सौंप दिया।इस असाधारण त्याग को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।
बंगाल के एक संपन्न परिवार में जन्मे रासबिहारी बोस, एक समय में ब्रिटिश राज में Forest research Institutue देहरादून में हेड क्लर्क थे, बंगाल के विभाजन को देख कर उनका ब्रिटिश राज से मोहभंग हुआ, और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ने का निश्चय किया।
रासबिहारी बोस ने ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड हार्डिंग को मारने के लिए 1912 में दिल्ली में हुए हमले में मुख्य भूमिका निभायी, साथ ही वे बनारस षड्यन्त्र में भी शामिल थे। करतार सिंह सराभा के साथ ग़दर पार्टी की विद्रोह योजना के भी वे मुख्य कर्ता धर्ता रहे, https://twitter.com/theastutereader/status/1264556307224412162?s=21
किंतु किसी तरह ब्रिटिश सरकार को ग़दर पार्टी के योजित विद्रोह के बारे में पता चल गया और यह प्रयास असफल रहा। चूँकि इस अभियोग के कारण गिरफ़्तार होने पर मृत्युदंड निश्चित था, स्वाधीनता के प्रयासों को जारी रखने के लिए रासबिहारी भेस और नाम बदल कर जापान पहुँच गए।
वह जून 1915 में जापान के बंदरगाह शहर कोबे पहुंचे, और वहाँ से टोक्यो के लिए अपना रास्ता बनाया। यहाँ, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से सहानुभूति रखने वाले नेताओं के साथ संपर्क स्थापित किया, जिनमें प्रभावशाली दक्षिणपंथी राजनेता, मित्सुरु टोयामा शामिल थे।
दिलचस्प बात यह है कि रासबिहारी जापान के नागरिकों के बीच एक अनोखी वजह से आज भी प्रसिद्ध हैं: उन्होंने एक प्रामाणिक भारतीय करी को पेश किया जो अभी भी टोक्यो के लोकप्रिय रेस्तरां “नाकामुराया”में परोसा जाता है, एक अनुमान के अनुसार अभी भी इस करी की 6 बिल्यन डिश हर वर्ष परोसी जाती हैं
टोकियो पहुँचने के बाद रासबिहारी बोस को धनी “सोमा” परिवार में शरण मिली, यही परिवार “नाकामुराया” रेस्तराँ का मालिक था। सोमा परिवार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थक था और इसी कारण उन्होंने बोस को शरण दी। ये शरण धीरे धीरे स्नेह में बदली और अंततः बोस ने तोशिको सोमा से विवाह किया
तोशिको ने बोस से उस समय शादी की, जब विदेशियों से शादी करना, जापानी समाज द्वारा स्वीकार्य नहीं था। न केवल उसने स्वेच्छा से सामाजिक बहिष्कार के जीवन को स्वीकार किया, उसने घरेलू जिम्मेदारियों को निभाया ताकि बोस को भारतीय स्वतंत्रता के अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कोई रुकावट नहीं आए
रासबिहारी ने भारतीय स्वाधीनता के लिए प्रयास बढ़ा दिए, वे जापानी समाचार पत्रों- पत्रिकाओं में भारत की सामयिक अवस्था पर लेख लिखने लगे, धीरे धीरे अपने प्रयासों से जापानी अधिकारियों को भारत के स्वतंत्रता अभियान को सहयोग देने के लिए मनाया और Indian Independence League की स्थापना की
जापान में रहते हुए भी उन्होंने भारत में, खासकर सुभाष चंद्र बोस के राष्ट्रवादी आंदोलन के विकास पर दृष्टि रखी । वैसे उन्होंने गांधी के विचारों और बलिदान की भावना की प्रशंसा की, लेकिन वे युवा नेता सुभाष से बहुत अधिक प्रभावित हुए, जिन्हें उन्होंने "आज का व्यक्ति" बताया।
द्वितीय विश्व युद्ध के छिड़ जाने के बाद सिंगापुर 1942 में जापान के नियंत्रण में आ गया, तो उस समय दक्षिण-पूर्व एशिया में लगभग 32,000 भारतीय कैदी-युद्ध थे, मेजर फुजिवारा ने इन भारतीय सैनिकों से वादा किया था कि वह उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हरसंभव सहायता प्रदान करेंगे।
रासबिहारी बोस ने टोक्यो छोड़ दिया और जापानियों की मदद से भारत को आज़ाद कराने के अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए बैंकॉक की यात्रा की। यहीं पर उन्होंने ब्रिटिश के खिलाफ क्रांतिकारी विद्रोह को मजबूत करने के लिए इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की, जिसमें आईएनए लीग की सैन्य इकाई थी,
मई 1943 में, वह सुभाष (जो बर्लिन से यात्रा के बाद जापान पहुंचे थे) से पहली बार मिले और प्रभावित हुए। मुलाक़ात के बाद मित्सुरु टोयामा ने कहा “You both have the same surname. But I think that you both have by now one soul. Hence you both should fight for the freedom of India”
दोनों बोस में उनके अंतिम नामों के अलावा भी कई और समानताएँ थीं।दोनो के बीच हुए अल्पज्ञात पत्राचारों में, हम देख सकते हैं कि वे एक-दूसरे से, लगभग हर महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दे पर, एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से प्रतिध्वनित हुए।
दोनों के विचार भारतीय राजनीति के दूसरे ध्रुव, मोहनदास गांधी के विपरीत थे। यह विचारों का मिलन और स्वभाव की समानता थी जिसने राशबिहारी को पूर्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेतृत्व को सुभाष को सौंप देने में सक्षम बनाया।
एक विडम्बना ही है कि तथाकथित इतिहासकारों और वामपंथी लेखकों ने हमारे देश की स्वतंत्रता का संपूर्ण श्रेय केवल अहिंसा आंदोलन के प्रणेता और उनकेसमूह को दे दिया, और सुभाष, रासबिहारी, करतार सिंह जैसे कितनों के योगदान को दरकिनार कर उन्हें इतिहास से भुला दिया गया।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेन्त ऐटली जिसके शासन में भारत स्वतंत्र हुआ, उसने कहा था- “it was the INA and the RIN Mutiny of February 18-23 1946 that made the British realise that their time was up in India.” https://www.tribuneindia.com/2006/20060212/spectrum/main2.htm
“I was a fighter. One fight more. The last and the best.”- Rash Behari Bose

हमारा एकमेव प्रयत्न होना चाहिए कि ऐसे वीरों के निस्वार्थ बलिदान को ना हम भूलें, ना औरों को भूलने दें।

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...।’ 🙏🚩🙏
Credits- Saswati Sarkar @sarkar_swati has written many articles on these revolutionaries, this thread is translated and inspired from those, please do read to know more on below page https://sringeribelur.wordpress.com 
You can follow @TheAstuteReader.
Tip: mention @twtextapp on a Twitter thread with the keyword “unroll” to get a link to it.

Latest Threads Unrolled: