कोरोना अब ऐसी स्थिति में पहुँच चुका है जहाँ कोई नियंत्रण नहीं है। जब तक लॉकडाउन था तब तक शांति थी। महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान जैसी असंवेदनशील सरकारें जो वहाँ आए लोगों का ध्यान नहीं रख सकीं और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दीं कि लोग घबरा गए। घबराए हुए लोग, पलायन करने को तड़प उठे।
जैसे ही मौका मिला लोग, हर उस साधन से अपने गाँवों की तरफ भागे जहाँ उनके परिवार और सुरक्षा की उम्मीद है। लेकिन उनके साथ रोग भी आ पहुँच है गाँवों तक। उत्तर प्रदेश ने अपने निवासियों को खुले हाथों आने दिया है, और मध्य प्रदेश में भी वही स्थिति है।
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में भीषण संकट उत्पन्न हो रहा है। भीषण गर्मी है, ग्रामीण क्षेत्रों में क्वारंटाइन सेंटरों में सुविधा पहुंचाना कठिन काम होता जा रहा है।
अब ग्रीन ज़ोन भी ऑरेंज और रेड जोन बनते जा रहे हैं। लोगों की हिस्ट्री ढूंढनी मुश्किल हो रही है।
सरकार कितने भी प्रयत्न कर ले आने वाली विभीषिका से बच पाना बहुत कठिन दिख रहा है। लोगों को घर पहुंचाने का निर्णय संवेदनशील था, लेकिन क्या उपाय था पता नहीं।
निश्चित रूप से ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हो रहा है जो लोगों को आर्थिक, मानसिक, और भावनात्मक रूप से तोड़ देगा।
बुजुर्गों से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि वे घरों से न निकलें और साथ ही जिम्मेदारी लोगों पर भी है कि बुजुर्गों को जो चाहिए वो उन्हें घर पर उपलब्ध करवायें। और अगर आप बाहर से आए हैं तो हाथ मुँह धोकर ही घर में घुसें।
जिनको कोई समस्या पहले से है वो घरों में ही रहें।
सरकारें अगर चाहें तो ऐसे सभी कर्मचारियों की सूची बना ले जो 50 वर्ष से ऊपर के हैं, और उन्हें कोई रोग है, दिल, सांस, किडनी की कोई समस्या है।
ऐसे कर्मचारी अगर फाइलों का निपटारा घर से कर सकें तो घर से करें। फ़ाइल लेने और वापस रखने जाने दें। अन्यथा, इनको छुट्टी पर रखें।
सरकारें मस्जिद, मंदिर बंद नहीं करवा पाईं। भीड़ नहीं रही लेकिन लोग आते जाते रहे।परिणाम दुःखद रहे।
कोरोना से मृत्यु होने पर किसी भी तरह की धार्मिक क्रियाकर्म की अनुमति नहीं है।परिवार को शव देखने की अनुमति है लेकिन अगर आप किस्मत वाले हैं तो ही।अन्यथा अंतिम संस्कार प्रशासन कर रहा है।
जब एक कोरोना पीड़ित की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उसके बाद परिवार बहुत संकट में आ जाता है। अंदर क्या चल रहा है किसी को पता नहीं होता। बस आपको बुलेटिन मिलता है।
अगर किसी की स्थिति गंभीर है तो न ही परिवार का कोई सदस्य साथ रह सकता है न कोई और।
अंतिम बार मिल लेने की तड़प लिए व्यक्ति दुनिया को अलविदा कह देता है। और परिवार के लोग तड़पते रहते हैं कि उन्हें साथ रहने का एक बार देखने का ही मौका तो मिल जाता। आखिरी बार बात करने तो मिल जाती। सोचते रह जाते हैं कि कहाँ गलती हुई, क्या कर सकते थे कि ये स्थिति नहीं बनती।
फिर अचानक परिवार को पता चलता है कि व्यक्ति कोरोना से हार गया है। परिवार आघात से उभर ही नहीं पाता और प्रशासन अंतिम संस्कार कर देता है। किस्मत हुई तो अंतिम दर्शन मिल पाते हैं।
और इससे पहले कि परिवार संभले उन्हें क्वारंटाइन कर दिया जाता है। और सब समाप्त।
फिर अनुमतियों का दौर चलता है, अस्थियों के लिए। सरकारें कहीं स्पष्ट कर दें कि अस्थियाँ सुरक्षित रखी जाएँगी ताकि क्वारंटाइन में बंद परिवार बाद में अस्थियों का विसर्जन आदि कर सकें तो बड़ी कृपा होगी। प्रशासन अंतिम संस्कार करता है, उसके बाद अगर पूरा परिवार क्वारंटाइन है तो -
अस्थियों के विषय में क्या नियम हैं यह पता नहीं है।
पुत्र को दाह संस्कार करने नहीं मिलता, पुत्रियों को पिता का मुख अंतिम बार देखने नहीं मिलता। इससे दुःखद और क्या ही सकता है। लेकिन परिजन अंतिम संस्कार के विषय में किसी प्रकार की दुविधा में न रहें तो बेहतर हो।
प्रशासन जो संभव है, कर रहा है, उनकी प्राथमिकता जीवन बचाने की है सो वे कर रहे हैं।
लेकिन लोगों से अनुरोध है अब तो परिस्थितियों का आंकलन कर लें। बुरे के लिए तैयार रहें लेकिन सुरक्षा ही केवल बचाव है। अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा स्वयं करें। स्वस्थ रहें।
बुजुर्ग चीन जैसे कम्युनिस्ट देशों पर बोझ हो सकते हैं, लेकिन हमारे लिये मार्गदर्शक हैं। हमें उनका ध्यान रखना है मानसिक रूप से सुदृढ़ रहिए उनको भी रखिये। जिनके बुजुर्ग किसी परिस्थितिवष दूर और अलग रह रहे हैं, उनकी हिम्मत बढ़ाते रहिए। लगातार बात करते रहिए।दिन में दो तीन बार कीजिये।
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