दुनिया में फिलॉसफी के कई सिद्धांत हैं, अर्थात जीवन जीने और इसका अर्थ तलाशने के लिए लोगों ने विभिन्न दर्शन अपनाए और उन तौर-तरीकों को दुनिया को भी बताया। इन्हीं में से एक है- Nihilism. ये एक अनीश्वरवादी सिद्धांत है, जिसमें नैतिक मूल्यों को ही नकार दिया जाता है। 1/20
जैसे- कोई ईश्वर नहीं है, आपका कोई सगा-संबंधी नहीं है और आप हमेशा अपने सुख के पीछे भागिए, धर्म और अधर्म मत देखिए। कुल मिला कर ये कहता है कि पाप-पुण्य ये सब झूठ है। जर्मन दार्शनिक Friedrich Nietzsche को अक्सर इसका जनक माना जाता है। 2/20
सब कुछ को नकार देना, अस्तित्व को नकार देना- यही है Nihilism.
भारत में इसका सबसे प्राचीन उदाहरण कहाँ मिल सकता है? मेरे हिसाब से इस दर्शन का जनक महर्षि जाबालि को मान सकते हैं। रामायण मे वाल्मीकि ने जाबालि की एंट्री के समय ही उनकी बातों को धर्मविरुद्ध कह दिया है लेकिन...3/20
इसका मतलब ये नहीं कि इस पर चर्चा नहीं हो सकती। कहानी आपको पता है। पिता दशरथ को दिए वचन और माँ कैकेयी कि खुशी के लिए श्रीराम वन जाते हैं और चित्रकूट में भरत उनसे मिलने पहुँचते हैं। उनके साथ अयोध्या के कई प्रबुद्ध जन होते हैं, जिनमें से एक जाबालि भी थे। 4/20
जाबालि के तर्कों मे इतना दम था कि उसे काटने के लिए श्रीरामचन्द्र भी मुश्किल मे पड़ गए। वाद-विवाद के बीच अगर राम गुस्सा हो जाएँ तो ये बहुत ही गहरी बात है। जो व्यक्ति लाख मिन्नतों के बावजूद समुद्र द्वारा रास्ता न देने के बाद भी नहीं गुस्साया,...5/20
आखिर उसे जाबालि पर क्रोध क्यों या गया? उन्होंने अपने दिवंगत पिता दशरथ द्वारा जाबालि को सलाहकार बनाने की भी निंदा की। ये बहुत अजीब था कि श्रीराम ने अपने पिता द्वारा की गए किसी काम की निंदा की और क्रोधित भी हो गए। 6/20
ये वो समय था जब सब उन्हें सिंहासन धारण करने और अयोध्या लौट चलने बोल रहे थे। जाबालि भी यही समझाने आए थे, लेकिन कुछ पुष्ट तर्कों के साथ।
जाबालि का कहना था कि जो व्यक्ति अपने सामने पड़ी हुई चीज को त्याग कर धर्म के लिए दुःख सहता है, वो ज़िंदगी भर दुःख ही भोगता रह जाता है। 7/20
एक तरह से वो सही भी थे क्योंकि की धर्मावलम्बी इस पृथ्वी पर कभी सुख नहीं भोग पाए, कुछ तो मार डाले गए। बहुतों कि इच्छा ही नहीं थी। जाबालि का ये मानना था कि जो है सो प्रत्यक्ष है, इसी संसार मे है- इसके अलावा कुछ है ही नहीं। महर्षि जाबालि ने श्राद्ध के सिस्टम को भी नकार दिया था। 8/20
उन्होंने राम से पूछा कि ऐसा किसने देखा है कि मरा हुआ आदमी खाता है? ये तो अन्न नष्ट करना हुआ।
उन्होंने एक उदाहरण दिया। अगर किसी का श्राद्ध कर देने से उसका पेट भर जाता तो किसी राहगीर को अपने साथ खाने की पोटली क्यों ढोनी पड़ती? 9/20
वो चला जाता, उसके बाद घरवाले रोज उसका श्राद्ध कर देते, उसका पेट भरता जाता। इसीलिए वो राम को समझाते हैं कि भला कौन किसका सगा-संबंधी है, कोई भी जीव अकेला आता है और इस दुनिया से अकेला ही चला जाता है। 10/20
उन्होंने कहा कि ये मेरा ये है, वो मेरा वो है- ऐसे संबंधों मे पागल ही आसक्त होते हैं। यहाँ सोचने वाली बात ये है कि गीता मे श्रीकृष्ण ने कुछ ऐसी ही बातें की थीं। यहाँ जाबालि श्रीराम को उनका वचन तोड़ने को कहते हैं।
जाबालि ने यहाँ राम को जन्म कि बायोलॉजी समझाई और...11/20
कहा कि आपके अब दशरथ कोई नहीं हैं, जाइए और राज्य ग्रहण कीजिए। यहाँ जाबालि कहते हैं कि प्रत्यक्ष को ग्रहण करो, अप्रत्यक्ष को त्याग दो। प्रत्यक्ष क्या है? अर्थ। यानी, राज, धन, भोग-विलास और सुख। अप्रत्यक्ष क्या है? धर्म। जाबालि ने कहा कि जिसने तुमने न देखा है और न सुना है,...12/20
उस धर्म के लिए तुम प्रत्यक्ष जो दिख रहा है, उसे त्याग रहे हो? अब वो हिस्सा आता है, जहाँ महर्षि जाबालि के कथन से रामचन्द्र क्रोधित हुए होंगे। जाबालि ने सभी धर्मग्रंथों को नकार दिया। उन्होंने कहा कि तप-त्याग, दान-दीक्षा, और यज्ञ-संन्यास- ये सब धूर्तों द्वारा बनाए गए उपक्रम हैं। 13
जाबालि ने आखिर ऐसा क्यों सोचा? उनका कहना था कि बैठे-बैठे खाने के लिए ये सब बनाया गया क्योंकि कमा कर खाने मे तो मेहनत लगती है। इसीलिए, ये सब प्रपंच रचा गया। पिता के सामने कि गई सत्यप्रतिज्ञा क्या है? 14/20
जाबालि इसका जवाब देते हैं कि किसने देखा है कि इससे पुण्य होगा लेकिन ये तो प्रत्यक्ष दिख रहा कि राज ग्रहण करने से सुख होगा। यानी वो राम से ये कह रहे हैं कि आप किस पुण्य के लिए ये सब कर रहे हैं? वो पिता भी चले गए। और हाँ, उन्होंने पूछा था कि ये परलोक क्या होता है? 15/20
जो है सो इसी लोक मे है, यहीं है।
इस पूरे प्रसंग मे चार्वाक का नाम भी आता है। एक बार वाल्मीकि लेते हैं और एक बार श्रीराम। असल में नास्तिकवाद के जनक चार्वाक ही थे, जाबालि से भी पहले। उनका भी यही दर्शन था कि जो है सो इसी लोक में है। 16/20
उनकी थ्योरी थी- जब तक जिंदा रहो मौज करो, खूब उधार लो और घी पीयो। चार्वाक के बारे में मैंने कुछ खास पढ़ा नहीं है (बहुत कुछ उपलब्ध भी नहीं) लेकिन उनकी Rationalism वाली थ्योरी से जाबालि प्रभावित रहे होंगे, तभी उनका नाम आता है। जाबालि ने ये बातें ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के सामने कही थी। 17
बाद मे राम के क्रोधित होने पर वशिष्ठ वहाँ आस्तिकता कि बातें करते हैं और कहते हैं कि जाबालि बस आपको प्रसन्न करने के लिए ऐसा बोल रहे थे।
सार ये कि सनातन धर्म में भगवान के सामने खड़े होकर भगवान को ही नकारा जा सकता है और जिस तरह से जाबालि कि बातों का जवाब श्रीराम ने दिया,.....18/20
वो शायद किसी रत्न से कम नहीं। श्रीराम ने जाबालि के तर्कों का और सवालों का सिलसिलेवार तरीके से जवाब दिया और बिन्दुवार अपनी बात रखी। इसी तरह अष्टावक्र-जनक संवाद है और राम-वशिष्ठ संवाद है। असल में रामायण सिर्फ़ कहानी नहीं है, एक सोच है, एक दर्शन है, जिसमें कई सिद्धांत समाहित हैं। 19
लेकिन, श्रीराम ने जवाब क्या दिया? अगर आपलोगों को रोचक लगे तो मैं आगे लिखूँगा। बताइए। जानना चाहेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम ने क्या कहा?
बाकी इस प्रत्यक्ष बनाम परोक्ष और अर्थ बनाम धर्म के Debate मे आप अपनी राय जरूर रखें। कम से कम पता तो चले यहाँ कितने दार्शनिक हैं। 20/20
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