जे त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहैं दु:खतैं भयवन्त
तातैं दु:खहारी सुखकार, कहैं सीख गुरु करुणा धार
तास भ्रमण की है बहु कथा, पै कछु कहूँ कही मुनि यथा।
काल अनन्त निगोद मंझार, बीत्यो एकेन्द्री-तन धार
Words from #Jinvani #Jainism
तातैं दु:खहारी सुखकार, कहैं सीख गुरु करुणा धार
तास भ्रमण की है बहु कथा, पै कछु कहूँ कही मुनि यथा।
काल अनन्त निगोद मंझार, बीत्यो एकेन्द्री-तन धार
Words from #Jinvani #Jainism
एक श्वास में अठदस बार, जन्म्यो मर्यो भर्यो दु:ख भार।
निकसि भूमि-जल-पावकभयो,पवन-प्रत्येक वनस्पति थयो
दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणि, त्यों पर्याय लही त्रसतणी।
लट पिपीलि अलि आदि शरीर, धरिधरि मर्यो सही बहुपीर
This thread is related with "6 dhala ji " written by pt daulatram ji
निकसि भूमि-जल-पावकभयो,पवन-प्रत्येक वनस्पति थयो
दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणि, त्यों पर्याय लही त्रसतणी।
लट पिपीलि अलि आदि शरीर, धरिधरि मर्यो सही बहुपीर
This thread is related with "6 dhala ji " written by pt daulatram ji
कबहूँ पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन बिन निपट अज्ञानी थयो।
सिंहादिक सैनी ह्वै क्रूर, निबल-पशु हति खाये भूर
कबहूँ आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अतिदीन।
छेदन भेदन भूख पियास, भार वहन हिम आतप त्रास
#Jainism
सिंहादिक सैनी ह्वै क्रूर, निबल-पशु हति खाये भूर
कबहूँ आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अतिदीन।
छेदन भेदन भूख पियास, भार वहन हिम आतप त्रास
#Jainism