मन्दिरों में प्रतिमा निर्माण से पहले पत्थरों की परीक्षा की जाती है। मयमतम्, अग्नि पुराण और सूत्रधार-मण्डन जैसे ग्रंथों में पत्थरों की जांच के लिए नियम लिखे गए हैं और देवता मूर्ति प्रकरण के अनुसार पाषाण को तीन प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है। पुंशिला, स्त्रीशिला और नपुंसक शिला! » https://twitter.com/griwin9/status/1260544063159205888">https://twitter.com/griwin9/s...
जिस पत्थर से & #39;गजघंटारवाघोषा& #39; मतलब हाथी के गले में बंधी घंटी जैसी मधुर आवाज उठती है उसे पुंशिला कहते हैं। पुंशिला सम-चोरस होती हैं और देवप्रतिमा तथा शिवलिंग निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है। »»
& #39;कांस्यतालसमध्वनिः& #39; कांसे जैसी ध्वनि उत्पन्न करने वाले पत्थरों का वर्गीकरण स्त्रीशिला के रूप में किया गया है, इनका आकार गोल होता है और सूत्रधार-मण्डन के अनुसार देवी प्रतिमा का निर्माण इससे किया जाता है। यह शिला मूल में स्थूल तथा अग्रभाग में कृश होती है। »»
अनियमित आकार और & #39;स्थूलाग्रं च कृशं मध्यं& #39; अग्र भाग में स्थूल और मध्य में कृश शिला को नपुंसक शिला कहा गया है। नपुंसक शिला का उपयोग ब्रह्मशिला या कूर्मशिला के रूप में देवप्रतिमाओं के आधार/नींव में किया जाता है। इन्हें पादशिला भी कहते हैं। »»
विविध ग्रंथों में शिला-लक्षण जांचने के लिए इतना विस्तृत वर्णन किया गया है कि एक ट्वीटर थ्रेड में इन सभी जानकारियों को समाविष्ट करना मुश्किल है। पत्थरों की दिशा, आकार, ध्वनि और रंग जैसे अनेक परिमाणों से शिला परीक्षा की जाती है। »»