प्रतिमा विज्ञान में इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। आप जिस मुद्रा के बारे में बात कर रहे हैं उसे 'अभंग मुद्रा' कहते हैं। इसमें शरीर का कमर का हिस्सा थोड़ा सा बल खाया हुआ होने की वजह से एक पैर आगे की ओर बढ़ा होता है। »» https://twitter.com/IdamRashtram/status/1260221411957882880
'त्रिभंग मुद्रा' में शरीर के तीन हिस्से बल खाते हैं। गर्दन, कमर और घुटनों को इतने आकर्षक तरीके से मोड़ा जाता है कि प्रतिमा की भाव-भंगिमा में एक उर्जा का आभास होता है। अप्सराओं के शिल्प अक्सर त्रिभंग मुद्रा में बनाए जाते हैं। »»
नटराज शिव और अन्य नृत्यरत प्रतिमाओं में पात्रों के गर्दन, कोहनी, कमर, कलाई और घुटनों को विविध प्रकार से मुडा हुआ दिखाया जाता है इसलिए इसे 'अतिभंग मुद्रा' कहते हैं।
'समभंग मुद्रा' में पात्र बैठे/खड़े हुए दोनों ओर से समतुलन बनाए रखता है। यह प्रतिमाएं ज्यादा आकर्षक नहीं लगतीं। सामान्य रूप से ब्रह्माजी & ऋषि मुनियों की प्रतिमाएं समभंग मुद्रा में उकेरी जाती हैं। इन मुद्राओं का अभ्यास भरतनाट्यम जैसी नृत्य कलाओं में भी किया जाता है। #यात्रा
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