औरत के चरित्रहीन होने से पहले पुरुष अपना चरित्र खोता है

औरतों को नीचा दिखाने का सबसे सरल और सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला तरीक़ा है कि उसे वेश्या, रंडी, कैरेक्टरलेस कह दिया जाय, या अपने शब्द-विन्यास से उस तरफ इशारा किया जाय।
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ये बात और है कि हमारा समाज इस बात पर कभी ध्यान नहीं देता कि वो वेश्या अकेले कैसे बन जाएगी? उसको वेश्या बनाने में किसी पुरुष का होना बेहद ज़रूरी है।

जब एक स्त्री नंगी होती है, देह बेचने के लिए, तो पुरुष अपने कपड़े पहले ही उतार चुका होता है।
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वेश्या की ईमानदारी तो है कि वो एक जगह पर वेश्या है, लेकिन पुरुष का क्या जो अपने घर की दहलीज़ पर अपने तथाकथित चरित्र को त्याग कर किसी वेश्या के वक्षस्थल पर अपने हाथ फिराने आता है? उस पुरुष को वेश्या कहने में संकोच कैसा?
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तुम्हें अपने हिस्से का आनंद भी चाहिए, तुम्हें विवाह से बाहर परस्त्री से स्खलन भी चाहिए और चाहिए चरित्र भी। वाह! और वहाँ से निकलते हुए, या उसी बिस्तर पर नग्नावस्था में, तुम उसे रंडी कहकर गाली देने से भी नहीं हिचकते। जबकि रंडी तो असल में तुम हो, वो तो अपना काम कर रही है।
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उसने तो कभी नहीं कहा कि वो कुछ और है! तुम किसी और की तलाश में आए और उसने तुम्हें अपने कमरे में खींचकर, बिस्तर पर पटक कर तुम्हें नंगा किया और असहाय तुम! तुम बस अपने चरित्र का हनन देखते रहे। हाय रे पुरुष!

जब तक तुम अपनी मर्यादा नहीं लाँघते, कोई स्त्री कैसे वेश्या हो जाएगी?
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क्या उसने बंद कमरे में रहकर ही शहर में मुनादी करवा दी है कि वो वेश्या हो गई? हम उस समाज से हैं जहाँ वेश्या, बेहया, चरित्रहीन, कैरेक्टरलेस अब आम बोलचाल में, लड़के-लड़की के शाम के ब्रेकअप और सुबह के पैचअप के बीच बेतरतीबी से फेंके जाने वाले शब्द हैं।
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इनका घाव किसी के मानस पर कितना गहरा होता है, वो फेंकने वाला नहीं जानता।

यहाँ तो लड़की बिस्तर में तुमसे बेहतर है तब भी तुम्हें लगता है कि वो ऐसा कैसे कर सकती है! तुम तब भी उसकी इस रतिक्रिया में बेहतर होने को पचा नहीं पाते जैसे कि वात्स्यायन से प्राइवेट कोचिंग तुमने ली और...
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यहाँ एक लड़की तुम्हें पराजित कर रही है। तुमसे ये नहीं झेला जाता कि बिस्तर में तुमसे, जिसके पास एक स्तम्भित लिंग है, उसे एक लड़की कैसे सिखा रही है कि ऐसे करने से ज्यादा आनंद आएगा। एक ही तो जगह है जहाँ तुम उस पर अपने लिंग को चाक़ू की तरह इस्तेमाल करके उसे गोद सकते हो,
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और मन में बिना ग्लानि के खुद को साधुवाद देते बिना नहीं रह सकते। और तुम्हें वहाँ भी उसने परास्त कर दिया।

यही कारण है कि तुम्हारे मुँह से, तुम्हारे प्रचारतंत्र में, ये कह दिया जाना कि वो रंडी है, तुम्हारी जीत का डंका हो जाती है।
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तुम अपनी उतरती पतलून नहीं देखते लेकिन उसका डिज़ाइनर ब्रा देखकर ही तुम्हें लगने लगता है कि 'ये क्या! सेक्स को लेकर ये तो उतावली है, मुझे रिझाने के लिए इसने ऐसी ब्रा पहन ली है, ये तो दिनभर सेक्स के ही बारे में सोचती होगी।' वाह रे पुरुष!
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तुम औरतों से कहाँ हीन नहीं हो? और तुमने उसे कहाँ मारने की कोशिश नहीं की? भ्रुण से लेकर पैदा होते ही निपटा देते हो उसे तुम। उसके और तुम्हारे भोजन में अंतर आता है, शिक्षा में अंतर आता है। तुम्हारे सपने उससे बेहतर हो जाते हैं तो उसे तुम गृहिणी बना देते हो (इच्छा हो या ना हो)।
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तुम उसे ये समझा देते हो कि घर संभालना 'ही' उसका 'धर्म' है, और पति के खाने के बाद ही वो बचा-खुचा खाकर, देर रात में सो सकती है। उसे जगना भी तुमसे पहले है ताकि तुम्हारे कार्य करने में देर ना हो जाए। रात में उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे रौंदते भी तो होगे कई बार।
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फिर वो चरित्रहीन कैसे हुई? चरित्र की परिभाषा या तो तुमने नई गढ़ ली है या फिर तमाम तरह के छलावों की तरह अपने बनाए समाज में, तुम ही जज हो, तुम ही वक़ील, तुम ही अपराध करने वाले और तुम ही ये कहने वाले कि पीड़िता ने जीन्स पहना तो मैं बहक गया।
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फिर अपनी अदालत में तुम उसे जीन्स पहनने से रोक दोगे, क्योंकि ग़लती तो उसी की है ना!

क्योंकि स्त्री की देह को देखकर तुम्हारे मन का बहक जाना तो ब्रह्मा ने वेद की ऋचाओं में लिखकर दिया था ना! क्योंकि तुम्हारे मन के कुत्सित विचारों का ज़िम्मा भी तो वही उठाएगी ना जिसने...
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नौ महीने तुम्हें पेट में पाला है, और वो सौभाग्य से एक स्त्री है। तुम्हारा जन्म स्त्री से है, तो तुम्हारे सारे पाप भी तो उसी की देह पर फेंके जाएँगे ना!

तुम्हारा सौभाग्य ही तो है कि किसी स्त्री ने तुम्हें जन्म दिया; और तुम किसी स्त्री को रंडी कह लेते हो;
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और कोई स्त्री उसपर हँस देती है; और कोई स्त्री उस दूसरी स्त्री को वेश्या कह लेती है। तुम्हारे साथ तो इतने सौभाग्य चल रहे हैं। फिर भला स्त्रियों को वेश्या बताने से पहले तुम ये क्यों सोचोगे कि वहाँ एक पुरुष का पतित होना ज़रूरी है।
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(पुराना पोस्ट है।)
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