बिहारी घरों में जब मुर्गा-मटन बनता है
बिहारी लड़के/पुरुष को अगर खाना बनाना आता हो, चाहे वो गाँव में रह रहें हों, या बाहर आ गए हों, तो उनकी पूरी पाक कला मटन और मुर्गा बना कर खा लेने में ही निकल जाती है। उसके आगे वो चावल तक बनाना अपनी तौहीन समझते हैं।
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बिहारी लड़के/पुरुष को अगर खाना बनाना आता हो, चाहे वो गाँव में रह रहें हों, या बाहर आ गए हों, तो उनकी पूरी पाक कला मटन और मुर्गा बना कर खा लेने में ही निकल जाती है। उसके आगे वो चावल तक बनाना अपनी तौहीन समझते हैं।
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मसाला भी अमूमन माँ या बहन लोगों को ब्लैकमेल करके पिसवाते हैं, या पत्नी हुईं तब तो अधिकारवश। बहन वाले पीसे मसाले में मीन मेख निकाले तो ऐसी गाली पड़ती है, “हे! बेसी बर-बर नै न करहीं! जे देलियौ पीस क, ओहे म बनाय ले, ना त इहो फेंक देबौ कुइयाँ में!” (अनुवाद अगले ट्वीट में)
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(ज्यादा बोलो मत। जो पीस कर दिया है, उसी में बना लो, नहीं तो ये भी कुआँ में फेंक देंगे।)
पत्नी पर धौंस जमा लेंगे तो वो बेचारी सास, देवर या ननद से बोलेगी, “दिन भर मुर्गा-मछली करते रहो! खाना खुद है, यहाँ लोढ़ी हम रगड़ रहे। उसमें भी मीन-मेख... अपने पीस काहे नहीं लेते!”
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पत्नी पर धौंस जमा लेंगे तो वो बेचारी सास, देवर या ननद से बोलेगी, “दिन भर मुर्गा-मछली करते रहो! खाना खुद है, यहाँ लोढ़ी हम रगड़ रहे। उसमें भी मीन-मेख... अपने पीस काहे नहीं लेते!”
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पुरुष सुनता रहेगा, अमूमन लोक-लाज से या तो ताना मारेगा, या गुस्सैल हुआ तो गरिया देगा। गरियाने वालों की मात्रा बहुत कम ही है। देवर बेचारा कहेगा, “अरे उनका यही काम है। आप पीसिए न। अगले बार से पीसा हुआ ही मसाला ले आएँगे। आपके लिए चौक पर से भुन्जा (झालमूढ़ी) और सिंघाड़ा ला देंगे।”
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तब बहन को दिक्कत हो जाएगी, “हे रे छौरा, हमराल भुन्जा-सिंघाड़ा नै आनभीं त घॉर में पैसेल नै देबौ!” (रे! मेरे लिए भुन्जा और सिंघाड़ा नहीं लाए न तो घर में घुसने नहीं दूँगी।)
माताजी बीच में (अगर बेटा प्रिय रहा तो) बोलेंगी, “तोरा खातिर नै केना आनतौ...
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माताजी बीच में (अगर बेटा प्रिय रहा तो) बोलेंगी, “तोरा खातिर नै केना आनतौ...
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...भौजाई खातिर देउरक बेसी प्रेम होय छै। लेकिन बहीन त बहीने होय छै। हे रे छौरा, हमरोल आनभीं भुन्जा-सिंघाड़ा।” (तुम्हारे लिए कैसे नहीं लगाएगा... लेकिन भाभी के लिए देवर के मन में थोड़ा ज्यादा प्रेम होता है। लेकिन बहन तो बहन है! अरे! तुम मेरे लिए भी लेते आना भुन्जा-सिंघाड़ा।)
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इसी बीच छोटा भाई अब इस चक्कर में है कि जेब में बीस रुपए हैं, उससे तो भाभी और उसके ही नाश्ते का इंतजाम हो पाएगा। तब वो बोलता है, “हमरा जिमा म बीसे गो रूपा छै! बीस रूपा में केकरा-केकरा खातिर आनियौ?” (अरे मेरे पास बस बीस रूपया है! इसमें किसका-किसका लाएँ)
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तब भाभी उपाय सुझाएगी, और इतने ही ज़ोर से बोलेगी कि पति सुन ले, “इतना जो मुर्गा में पैसा गया है, सौ रूपया इनको दीजिए, हम लोगों को भी सिंघाड़ा खाना है।”
“खाली पैसा खर्चा करवाता है ये लोग! लो... ये लो दौ सौ रूपया और इन लोगों के लिए भी कुछ ले आओ,” बड़े भाई नोट निकालेंगे।
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“खाली पैसा खर्चा करवाता है ये लोग! लो... ये लो दौ सौ रूपया और इन लोगों के लिए भी कुछ ले आओ,” बड़े भाई नोट निकालेंगे।
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छोटा भाई लेगा और बहन पास बुलाएगी। वो बोलेगी, “हे रे! जे बैच जैतो, ओ कर झिलेबी ले लीहें।” (जो बच जाएगा, उसका जलेबी ले लेना।)
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