#श्रृंखला

~• सत्त्वगुण •~

सत्त्वं विशुद्ध जलवत्तथापि
ताभ्यां मिलित्वा सरणाय कल्पते ।

यत्रात्मबिम्बः प्रतिबिम्बित : सन्
प्रकाशयत्यर्क इवाखिलं जडम् ॥

सत्त्वगुण जल के समान शद्ध है , तथापि रज और तमसे मिलने पर वह भी पुरुष की प्रवृत्ति का कारण होता है ;
इसमें प्रतिबिम्बित होकर आत्मबिम्ब सूर्य के समान समस्त जड पदार्थों को प्रकाशित करता है ।

मिश्रस्य सत्त्वस्य भवन्ति धर्मा
स्त्वमानिताद्या नियमा यद्यामा:।

श्रद्धा च भक्तिश्च मुमुक्षुता च
दैवी च सम्पत्तिरसन्निवृत्तिः ॥
अमानित्व आदि , यम - नियमादि , श्रद्धा , भक्ति , मुमुक्षुता , दैवी - सम्पत्ति तथा असत् का त्याग – ये मिश्र ( रज - तमसे मिले हुए ) सत्त्वगुणके धर्म हैं ।
विशुद्धसत्त्वस्य गुणाः प्रसादः
स्वात्मानुभूतिः परमा प्रशान्तिः ।
तृप्तिः प्रहर्षः परमात्मनिष्ठा
यया सदानन्दरसं समृच्छति ।।

प्रसन्नता , आत्मानुभव , परमशान्ति , तृप्ति , आत्यन्तिक आनन्द और परमात्मा में स्थिति -
ये विशुद्ध सत्त्वगुणके धर्म हैं जिनसे मुमुक्षु नित्यानन्दरसको प्राप्त करता है ।

#रजोगुण https://twitter.com/sharvanishiv_/status/1250436680839880707?s=19

#तमोगुण

https://twitter.com/sharvanishiv_/status/1250807460081725440?s=19

~ विवेक चूड़ामणि !
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