बैंकों में स्थानीय पोस्टिंग क्यों जरूरी है इस पर एक थ्रेड लिखी है।
पिछले 10 15 सालों में बैंकों में अभूतपूर्व बदलाव आया है, और इसी के साथ बैंकों के काम करने के तरीके भी बदले हैं, उनके सामने प्राइवेट बैंकों से मिलती चुनौती इसका सबसे बड़ा कारण है।

पिछले 10 15 सालों में बैंकों में अभूतपूर्व बदलाव आया है, और इसी के साथ बैंकों के काम करने के तरीके भी बदले हैं, उनके सामने प्राइवेट बैंकों से मिलती चुनौती इसका सबसे बड़ा कारण है।
अब एक बैंक अधिकारी का काम सिर्फ पासबुक प्रिंट करना नहीं रह गया है, उसे इन्शुरेन्स भी बेचना है, रिकवरी भी करनी है, कृषि ऋण भी देना है और यह सब बिना स्थानीय भाषा के ज्ञान के बग़ैर सम्भव नहीं है।
इस बात को प्राइवेट बैंक बहुत जल्दी समझ गए और उन्होंने स्थानीय लोगों को रखना पहले ही शुरू कर दिया था, और इसी कारण से उन्होंने रिटेल ग्राहकों पर एक मजबूत पकड़ बना ली।
भारत में सबसे अच्छी लोन रिकवरी की क्षमता अगर कोई रखता है वे हैं NBFCs जिनमें आप देखेंगे कि ज्यादातर स्थानीय कर्मचारी ही होते हैं, जो कि ज्यादा अच्छे तरीके से रिकवरी कर पाते हैं।
स्थानीय पोस्टिंग का सीधा जुड़ाव बैंकों के नियमों को ग्राहकों तक पहुचाने में भी है। बैंकों के ऐप, मोबाइल से खाते की जानकारी इत्यादि तरीके ग्राहकों को स्थानीय भाषा में ही समझाया जा सकता है तथा उनके शिकायतों का निवारण भी स्थानीय भाषा में ही अच्छे से किया जा सकता है।
इसीलिए अब सरकारी बैंक भी अपने ट्रांसफर और पोस्टिंग के नियमों में जितनी जल्दी संशोधन कर लें उतना ही अच्छा रहेगा, क्योंकि अगर आपको अपने प्रतिद्वंदी बैंक से मुकाबला करना है तो अपने कर्मचारियों को उसी तरह का माहौल भी उपलब्ध कराना होगा, वरना जितनी देर होगी नुकसान उतना ही ज्यादा होगा।