NDTV चीन को मुखर हो कर डिफेंड क्यों कर रहा है
मैंने 2 चीनी कम्पनियों में लगभग 3.5 साल काम किया है। पहली कम्पनी थी ‘चीता मोबाइल’, दूसरी ‘बाइटडान्स’। मैंने देखा है कि भारत में क्षेत्रीय भाषाओं को ले कर ये लोग कितने गंभीर हैं। ‘हेलो’ और ‘टिकटॉक’ सरीखे एप्स बाइटडान्स के ही हैं।
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मैंने 2 चीनी कम्पनियों में लगभग 3.5 साल काम किया है। पहली कम्पनी थी ‘चीता मोबाइल’, दूसरी ‘बाइटडान्स’। मैंने देखा है कि भारत में क्षेत्रीय भाषाओं को ले कर ये लोग कितने गंभीर हैं। ‘हेलो’ और ‘टिकटॉक’ सरीखे एप्स बाइटडान्स के ही हैं।
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यहाँ के लोगों को प्रभावित करने के लिए चीनी कम्पनियाँ काफी गहरे उतरती है। सोशल मीडिया के जरिए चाल-चलन का अंदाजा लगाने से ले कर चीन के खिलाफ ‘शून्य’ कंटेंट सुनिश्चित करने के लिए ऑडिटर्स की फौज होती है। पैसे की कमी नहीं है।
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वैश्विक मीडिया को इन्होंने कैसे मैनेज किया वो आपको दिखा ही कि ट्रम्प तक को अपने ही देश की मीडिया में ‘चाइनीज वायरस’ बोलने पर ‘रेसिज्म’ का आरोप लगा। यूरोपीय देशों में तीन की कवरेज देख लीजिए फिर आपको पता लगेगा कि रवीश के प्राइम टाइम में कल चीन को क्यों डिफेंड किया जा रहा था।
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इसमें संदेह मत रखिए कि NDTV के इस चालीस मिनट के लिए मालिक, एंकर और गेस्ट (जानकार) को कैसे मैनेज किया गया होगा। वित्तीय संकट और सार्वजनिक दुत्कार से जूझते NDTV के लिए ‘भागते भूत की लंगोट सही’ वाली स्थिति रही होगी। कुछ तो आ रहा है, पब्लिक तो वैसे ही गाली देती है।
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चीनियों की एक और समस्या है कि वो सर्वे हमेशा किसी बड़ी कम्पनी से करा कर उसे ही सच मान लेते हैं। ऐसी कम्पनियाँ भी उनसे खूब पैसा ऐंठती हैं। ऐसी ही कम्पनी ने कहा होगा कि NDTV की बहुत धाक है हिन्दी में, तो PR वाले वहाँ चले गए होंगे!
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भारत में चीन को ले कर बहुत बेकार परसेप्शन है और यहाँ वो मीडिया कवरेज पर नियंत्रण चाहते हैं। इसलिए आने वाले समय में आप NDTV के हर प्रोग्राम पर नजर रखिएगा। चीन को ले कर सकारात्मक होना और उसका आधार ‘भारत के कथित निकम्मेपन’ को बनाया जाता रहेगा।
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