चलिए आपको ले चलता हूँ साल २०११ में, जब इंडिया अगेंस्ट करप्शन अपने चरम पर था।

ये सिलसिलेवार घटनाएं आप अंग्रेजी में @thakkar_sameet की पोस्ट में नीचे पढ़ सकते हैं जिसका मैं आप सभी के लिए हिंदी में अनुवाद लेकर आया हूँ । https://twitter.com/thakkar_sameet/status/1250353796812685313
तो बात है २०११ की जब अंग्रेजी मीडिया समाज पर हावी हो रहा था। गोस्वामी  साहब टाइम्स नाउ संभाले हुए थे और नेरेटिव सेट करने में अग्रणी माने जाते थे।

एक रोज़ उसी माहौल में मियाँ जी, पटेल और चिद्दू मिलकर  पुरी, राघव और रॉय से मुलाकात करते हैं।
गोस्वामी नामक काँटा अब ज्यादा चुभ रहा था जिसको दूर करने का वक्त आ गया था मगर अफ़सोस, कि बहुत देर हो चुकी थी।

लोग सड़कों पर उतर चुके थे और कांग्रेसी इकोसिस्टम को इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती दी जा चुकी थी।
और यही वो  समय था जब लिविंग मीडिया, जिसके तहत आज का इंडिया टुडे (उस समय का हेडलाइंस टुडे) आता है, आर्थिक रूप से रसातल की तरफ जा रहा था। पुरी साहब ने मियाँ जी और चिद्दू को इस मुसीबत से उबारने को कहा।
और फिर २०१२ में  मियाँ जी और चिद्दू ने कुमार को पुरी साहब की मदद करने को राज़ी कर ही लिया। अपने दोस्तों की मानते हुए ,आने वाले  मई २०१२ में कुमार ने लिविंग मीडिया लिमिटेड के २७.५% शेयर ले डाले।
हेडलाइंस टुडे में कुमार की हिस्सेदारी आने के बाद सबसे पहली कहानी जो आई थी, वो थी-  “गुजरात का कथित स्नूप केस” और उसके बाद आया था “इशरतजहां एनकाउंटर मामला” ।

टाइमिंग भी गज़ब चुनी थी कुमार साहब की टीम ने...
गुजरात विधानसभा चुनाव से बस छः महीने पहले ये सब सामने आया था।
लेकिन मोदी ने गुजरात में २०१२ में इतिहास रच डाला और जनता ने विरोधी इकोसिस्टम को शानदार तरीके से खारिज कर दिया। अभी हेडलाइंस टुडे  ने हार नहीं मानी थी । जून २०१३  तक उनका मोदी विरोधी अभियान चलता रहा।
वो पूरी कोशिश में लगे रहे कि मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार ना बनाया जाए। लेकिन यहाँ भी वो नहीं जीत पाए और एक बार जब मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी गयी। मर्ज़ी की ना होते देख पुरी और कुमार ने हवा के रुख को देखकर आखिरकार अपनी स्थिति बदल दी।
इस अवधि के दौरान कुमार ने लिविंग मीडिया लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी २७.५ से बढ़ाकर ३५% कर दी यानी ७.५% की वृद्धि ( बिना ये जाने हुए कि यही “ कुछ और” हिस्सेदारी उनकी लिए जी का जंजाल बनने वाली थी) ।
और फिर होता है नमो का उदय ,यानी आता है मई २०१४  जिसने कुछ कार्पोरेट परिवारों के पैरों तले से ज़मीन सरका दी, विशेष रूप से उन कॉरपोरेट्स के लिए जो गांधी परिवार के ख़ास थे।
और फिर जब अगस्त २०१४  में  मोदी सरकार ने  NDTV पर लगाम कसनी शुरू की तो कुमार को अंदेसा होने लगा था कि बस अब आगे उनकी ही बारी है। कुमार ने सबसे पहले जो काम किया वो ये कि लिविंग मीडिया लिमिटेड से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश शुरू कर दी।
दिल्ली की एक ख़ास जगह पर कुमार, अरुण और पुरी के बीच में एक ख़ास मुलकात होती है और इसी मुलकात में अरुण साहब, पुरी साहब से वादा करते हैं कि सरकार उनको परेशान नहीं करेगी ।

अरुण और पुरी की बरसों पुरानी दोस्ती ने अपना रंग दिखा दिया था ।
उस रात की मुलकात के बाद कुमार ने हेडलाइन्स टुडे को बेचने के अपने फैसले से कदम पीछे हटा लिए और इस तरह वो चैनल बच गया ।

समय अपना चक्र फिर चलाता है और २०१८ में होते हैं विधानसभा चुनाव ।
दिसंबर २०१८ के कुछ अलग से विधानसभा परिणामों के बाद पुरी और कुमार की पुरानी तमन्न्नाओ फिर सर उठाना शुरू करती हैं और दोबारा से भाजपा विरोधी अभियान शुरू किया जाता है । चाहे वह राहुल गांधी को मैगज़ीन कवर पर दिखाना रहा हो या राफेल के ऊपर की गयी उनकी उल जलूल स्टोरी...
दिन प्रतिदिन रुख फिर वही २०१४ से पहले वाला होता गया यानी एक भी दिन ऐसा ना गया होगा जिस दिन उन्होंने भाजपा विरोधी एजेंडा न चलाया हो।

भाजपा विरोधी एको सिस्टम के लिए खुशियों के दिन बस आने ही वाले थे, चुनाव आने वाले थे और मीडिया ने मोदी को पराजित घोषित कर दिया था।
चुनाव के परिणाम से पहले ही राहुल के रूप में भारत को नया प्रधानमंत्री मिल चुका था।

और फिर आती है २६ फरवरी २०१९ की रात जिसने माहौल को ३६० डिग्री बदल कर रख दिया। मोदी को अब कोई नहीं हरा सकता था।
पुरी और कुमार की जोड़ी ने केजरीवाल और इमरान को भी मात करते हुए एक बार फिर यू-टर्न  लिया और अपने “स्टैंड” को  बीजेपी समर्थक के रूप में दिखने का फैलसा ले डाला।

२३ मई, २०१९ की दोपहर होते होते कई परिवारों में मातम की हालत हो चुकी थी।
मोदी और  अमित बाबू की जोड़ी ने पहली बार से अधिक शानदार वापिसी की थी। पुरी के दोस्त अरुण इस बार उनको बचाने के लिए नहीं थे। इस बार ड्राइविंग सीट पर मोटा भाई थे ।

वोडाफोन आइडिया के मुद्दे के कारण कुमार अभी भी मोदी सरकार से नाराज ही थे।
पुरी साहब फिर कांग्रेस क दरबार में पहुँचते हैं और इस बार पदार्पण होता है कमल बाबू और मियाँ जी का इस चक्रव्यूह में। कमल बाबू और मियाँ जी, कुमार साहब को राजनितिक सुरक्षा कवच और १८० करोड़ के एक वित्त्तीय पैकेज का वादा करते हैं।
और इस डील के बाद अचानक इंडिया टुडे ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था और नौकरी पर सरकार विरोधी कहानी सुनानी शुरू कर दी ।

महाराष्ट्र और झारखण्ड में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यह सिलसिला और बढ़ता चला गया।
सीएए के विरोध और दिल्ली चुनावों के दौरान उनका स्टैंड एंड कवरेज कितना अस्पष्ट और विरोधी था ये अब कोई छुपी हुई कहानी नहीं है। ऐसे ही कुछ कवरेज उनकी जेएनयू प्रकरण और एबीवीपी के नकली टेप पर भी चलती रही ।
सीएए विरोधी आन्दोलन के प्रत्येक बीतते दिन के साथ इंडिया टुडे इस उम्मीद में था कि वो २०११ से २०१४ वाला टाइम्स नाउ बनने की राह पर है ।

२०१९ के सीएए विरोधी आन्दोलन को २०१४ के इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बना कर मोदी के खेल में मात देने की तैयारी कांग्रेस के इकोसिस्टम ने कर डाली थी।
कुमार साहब ने, सार्वजानिक मंच पर ये कह कर कि अगर यही आर्थिक नीतियाँ रहीं तो उन्हें अपना व्यापार बंद करना पड़ेगा, आग में और घी डाल दिया ।

 यह सब आर्थिक और सामाजिक दोनों मोर्चे पर सरकार के खिलाफ सोच समझ कर उठाया गया कदम था।
और साहेबान अब एंट्री होती है एंग्री यंग मैन सुपर हीरो की जिसका नाम है अमित ....

जनवरी २०२० के तीसरे सप्ताह में अमित बाबू के सामने २०१२ से २०१४  के दौरान लिविंग मीडिया की “कुछ और” हिस्सेदारी का मामला आता है।  (याद हैं ना आपको २७.५ % से ३५% वाला मामला?)
अभी तक केवल मोदी को ही इस बात की जानकारी थी क्योंकि अरुण जेटली ने उनको बताया था और रुकने के लिए निवेदन किया था।

अमित बाबू के हाथ तो जैसे कुबेर का खजाना लग जाता है और अब अमित बाबू, पुरी साहब को याद फरमाते हैं...
अब पुरी, सुप्रिया के साथ अमित बाबू के यहां हाजिरी लगाने जाते हैं जहाँ अमित बाबू  बिना हेल्लो हाय किये हुए उनके सामने वो फाइल सरका देते हैं । वो आगे नौश फरमाते हैं कि....
“कुमार साहब अब हमारी सरकार कम से कम पचास महीने तो रहने ही वाली है। मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि आपकी पूरी दुकान बंद हो जाए और इसके बारे में आप कोई शक नहीं पालिएगा”
पुरी साहब ने माथे पर आये पसीने को पोछते हुए हाथ जोड़कर पुछा कि, “प्रभु, आपके कोप का क्या कारण है? क्या गलती हुई हैं उनसे?”

अमित बाबू ने  कहा कि यह सवाल अपने आप से पूछिए।  ये भी जान लीजिये दिल्ली चुनाव के बाद मेरा कोई भी पार्टी प्रवक्ता आपकी बहस में भाग नहीं लेगा ।
पुरी साहब जब तक कुछ और कहते सुनते अमित बाबू कमरे से बाहर जा चुके थे ।

पुरी साहब पसीना पोछते हुए बाहर आये , प्रधानमंत्री कार्यालय में फोन करके मोदी जी से मिलने के लिए समय माँगा जिसे बड़े प्यार से ठुकरा दिया गया।
पुरी के पास अब कुमार के अलावा और कोई चारा नहीं था । पुरी ने कुमार को पूरी कहानी बताई और मिन्नतें की कि वो कैसे भी करके अमित बाबू को शांत करें ।

अमित बाबू ने कुमार साहब से भी मिलने को मना कर दिया।

आखिरकार उन्होंने इस्तीफ़ा प्रसाद को फोन किया और मीटिंग के लिए विनती की ।
इस्तीफ़ा प्रसाद ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वो अमित बाबू से बात करके ही कुछ कह पाएंगे ।
बात करने को राजी हुए अमित बाबू और
पहली मांग आई कि कुमार साहब और पुरी साहब की पूरी  टीम को सुधरना होगा।
पुरी साहब को मानना ही था, मान गए ।

और फिर राहुल को इंडिया टुडे से बाहर करने के लिए कहा गया।
पुरी ने कहा कि यह आपके खिलाफ भी जा सकता है जिसके जवाब में अमित बाबू ने वही कहा जो उम्मीद थी,

 “हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता” और फ़ोन वहीँ पर काट दिया गया ।
पुरी ने राहुल को यह बात बताई और उनसे पूछा कि क्या वह अमित बाबू गुस्से को शांत कर सकते हैं।
राहुल ने अमित बाबू को फोन करने की कोशिश की, जिस पर अमित बाबू ने कोई जवाब नहीं दिया। अगले दिन सुबह  (दिल्ली वाली सर्दियों में ) राहुल बिना किसी अपॉइंटमेंट के अमित बाबू के घर पर घंटी बजा रहे थे।

और आखिरकार अमित बाबू मिलने के लिए तैयार हो गए।
राहुल का पहला वाक्य था कि “मुझे माफ़ कर दिए मैं सिर्फ अपने मालिक के आदेश का पालन कर रहा था। मैं बीजेपी के खिलाफ नहीं हूँ”

अमित बाबू ने जवाब दिया, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता भाई लेकिन मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि आप बाजार में अगली बरखा दत्त होंगे"
राहुल ने समझदारी दिखाते हुए अमित बाबू से एक आखिरी मौका मांगा और कहा कि आज के बाद वो अमित  बाबू को निराश नहीं करेंगे।

अमित बाबू ने उन्हें दिल्ली अभियान कवरेज से दूर रहने के लिए कहा।

कुमार और पुरी दिल्ली आजतक को दिल्ली चुनाव और ट्रम्प यात्रा को बंद करने का निर्णय ले लेते हैं।
समय का पहिया आगे बढ़ता है। मार्च में यस बैंक के चेयरमैन राणा कपूर की गिरफ्तारी के साथ और एमपी में कमलनाथ को नुकसान होने की संभावना के साथ एक और महानुभव की धड़कने कम ज्यादा होने लगती हैं।  

इनका नाम है राघव जो एक बड़ा मीडिया हाउस चलाते हैं ।
वह राणा के अरेस्ट और कमलनाथ की हार से  वैसे ही तनाव में थे और इसी वजह से  क्विंट को बेचने का फैसला कर लेते हैं। वो महाराष्ट्र के एक बड़े राजनेता से संपर्क करते हैं, जो देश का सबसे बड़ा बीड़ी व्यवसाय चलाते है।
उन साहब  को दिल्ली आजतक को बंद करने की कुमार की योजना के बारे में पता था, इसलिए उन्होंने पूछा कि क्या वह डिजिटल समाचार मीडिया नेटवर्क खरीदने में रुचि रखते हैं।

कुमार बिरला ने रुचि दिखाई....

नहीं दिखानी थी 😋😋
मार्च के तीसरे हफ्ते में मुंबई के एक फाइव स्टार होटल में राघव,अरुण और बीडी वाले के बीच बैठक होती है।पुरी क्विंट खरीदने में दिलचस्पी दिखाते हैं और दोबारा से दिल्ली में मिलने का फैसला करते हैं।

जनाब पुरी को खबर नहीं थी कि बीड़ी वाले साहब  और राघव दोनों एजेंसी की निगरानी में हैं।
अगले दिन पुरी और कुमार को फोन आता है  कि ७.५% हिस्सेदारी के मामले की जांच शुरू होने वाली है और वे दोनों इसके लिए भारी कीमत चुकायेंगे।

अब आप इनकी अच्छी किस्मत कहिये या कुछ और कि इस बीच कोरोनोवायरस और लॉकडाउन की वजह से मामला ठन्डे बसते में चला जाता है ।
तो साहब आप जो अचानक आजकल पुरी साहब के मीडिया चेनल को प्रो बीजेपी या यूँ कहिये कि प्रो हिन्दू होता हुआ देख रहे हैं वो और कुछ नहीं बल्कि अपने गुनाह बक्श्वाने की कोशिश मात्र है।
ये कोशिश कामयाब होगी या नहीं ये तो समय ही बताएगा और साथ में ये भी देखा जायेगा कि मोदी और अमित बाबू कुछ कार्रवाई करेंगे या .....

  #जय हिन्द
तो साहब फिर शुरु करते हैं कहानी मीडिया की...
फिलहाल एक नज़र दौड़ाते हैं इंडिया टुडे की कहानी पर..
आपने गौर किया होगा कि पिछले कई दिनों से बीजेपी @aajtak पर सरकार विरोधी कवरेज पर अपना पक्ष रखने के लिए कोई प्रवक्ता नहीं भेज रही है।
यह उस चेतावनी की शुरुआत थी जो उस मुलाकात में @AmitShah ने दिल्ली चुनाव के दौरान पुरी और बहल को दी थी ।
पुरी को लगा था कि कुछ दिन के बाद मामला ठंडा हो जाएगा।
पर वो हुआ नहीं....
पुरी को ऐसा लगा था कि प्रवक्ता को नहीं भेजने के अपने फैसले पर बीजेपी लंबे समय तक कायम नहीं रहेगी नहीं रहेगी।
लेकिन तीन दिनों के बाद भी जब कोई नहीं आया तब आज तक के एक बड़े अधिकारी ने एक शीर्ष बीजेपी नेता को फोन किया।

नेता जी ने भी बाबा जी का ठुल्लू दिखा दिया और साफ मना कर दिया।
नेता जी इतने पर ही नहीं रुके और साथ में ये भी जोड़ दिए कि पुरी साहब से कहिएगा कि वो अपना चैनल बिना बीजेपी और सरकार के साथ चला सकते हैं।

सरकार ने अब फैसला लिया है कि वो आजतक के सहयोग के बिना सरकार और पार्टी चला कर दिखाएगी।
बुधवार की सुबह पुरी साहब ने नड्डा साहब को फोन लगाया और अपना प्रवक्ता भेजने का निवेदन किया।

पुरी ने वादा किया कि चर्चा में "बैलेंस" रखा जाएगा।

पर नतीजा ढाक के वही तीन पात।

पुरी साहब को समझ आ गया था कि सीधे अमित बाबू से बात ना करने पर शीर्ष नेतृत्व नाराज़ है।
उसी शाम आजतक ने नवीन कुमार, अपने सबसे बड़े खुराफाती और सरकार विरोधी एंकर जिनपर नक्सल आंदोलन को आवाज़ देने के आरोप लगते रहते हैं , को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

ये बीजेपी से हाथ मिलाने का संकेत था।
पुरी साहब को लगा कि शायद इस कदम से बीजेपी नेतृत्व कुछ शांत होगा।

उन्होंने फिर फोन लगाया और अपने प्रवक्ता को भेजने की मांग की।

नतीजा..
वही ढाक के तीन पात...

कोई नहीं आया बहस में भाग लेने..
फिर क्या था पूरी साहब आग बबूला हो गए और भाजपा के उन्हीं नेता को फोन कर बोले कि अगर भाजपा ने तय कर ही लिया है कि आजतक कर बायकॉट करना है तो यही सही और वो नवीन को वापिस बुला रहे हैं।

इसको कहते है पड़ी लकड़ी उठा कर.....

और पुरी साहब ने लकड़ी उठा लेने की गलती कर दी थी...
पुरी जी को सुनने के बाद नेता जी बड़े प्यार से मुस्कुराये और बोले,
"है भ्राता, आपको किसने कहा था नवीन को बाहर करने के लिए ?
और अब अगर आप उनको वापिस लेने को आतुर है तो भी आपको कौन रोक रहा है?"
नेता जी ने फोन पर ही पुरी साहब के "सुखद भविष्य" की कामना की और फोन रख दिया।

पुरी साहब "आजतक" सदमे में उसी फोन को "कान" से लगाए बैठे हैं।

आगे की कहानी @thakkar_sameet जी के सुनाने के बाद आपको सुनाई जाएगी।
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