राजमाता आप और मेवाड़ की वीरांगनायें सतीत्व और सम्मान की रक्षार्थ सहर्ष अग्नि का वरण कीजिए किले में..और आपका भाई बाघ सिंह किले के दरवाज़े पे युद्ध करेगा ..भाई का वचन है किले में जब तक सतीत्व की अग्नि ठंडी नही हो जाएगी ..जब तक शरीर मे आखिरी साथ देगा किसी को अंदर घुसने नही दूँगा ..
नाम:- बाघ सिंह देवलिया ...हालांकि ये रानी कर्णवती के सगे भाई नही थे ..लेकिन रानी और बाघ सिंह देवलिया हाड़ा कुल से आते थे और बूंदी राज्य से थे तो बाघ सिंह जी रानी कर्णवती को बड़ी बहन जैसा आदर सत्कार देते थे ।
अब तक राणा सांगा युद्ध मे चल बसे थे ..मेवाड़ कमजोर होने लगा था...
अब तक राणा सांगा युद्ध मे चल बसे थे ..मेवाड़ कमजोर होने लगा था...
राणा उदय सिंह और राणा विकम्रादितिय अभी छोटे थे ..कुछ समय के लिए सत्ता रानी कर्णवती ने संभाली ।
मेवाड़ को कमजोर होते देख और राणा सांगा मि मृत्यु की खबर से गुजरात के सुलतान बहादुर शाह की विशाल सेना और तोपों से सुसज्जित सेना ने दुर्ग पर आक्रमण कर दिया ।
मेवाड़ को कमजोर होते देख और राणा सांगा मि मृत्यु की खबर से गुजरात के सुलतान बहादुर शाह की विशाल सेना और तोपों से सुसज्जित सेना ने दुर्ग पर आक्रमण कर दिया ।
तब रानी कर्णावती ने पत्र लिखकर मायके से बूंदी सरदारों से मदद मांगी ...देव सिंह जी अपनी छोटी सी सेना लेकर मेवाड़ पहुँचे..और मेवाड़ राज ध्वज के नीचे मेवाड़ी पगड़ी पहनकर युद्ध के लिए तैयार हो गए ..उन्होंने रानी कर्णावती को वचन दिया था मैं दुर्ग के दरवाजे पे ही रहूंगा ...
किसी को अंदर नही आने दूँगा ..जब तक जीवित रहूंगा ..इन भाई - बहन की बात इतिहास में कोई नही करता ..एक भाई के इस वचन को भारीतय इतिहास में छिपा दिया गया ।
दिन था 8 मार्च 1535 ..सुल्तान बहादुर शाह की सेना किले पे तोपो से हमला शुरू कर दिया था ।
दिन था 8 मार्च 1535 ..सुल्तान बहादुर शाह की सेना किले पे तोपो से हमला शुरू कर दिया था ।
दो युद्ध चल रहे थे ...एक युद्ध एक भाई किले कब बाहर लड़ रहा था और दूसरा युद्ध बहन किले के अंदर अग्नि में जौहर/ साका के लिए ।
डॉक्टर गौरीशंकर ओझा अपनी किताब में लिखते है ..."बाघ सिंह एक चट्टान की तरह किले और आक्रांताओं के बीच खड़ा था ..वो दुर्ग के पास किसी भी आक्रांता को भटकने"...
डॉक्टर गौरीशंकर ओझा अपनी किताब में लिखते है ..."बाघ सिंह एक चट्टान की तरह किले और आक्रांताओं के बीच खड़ा था ..वो दुर्ग के पास किसी भी आक्रांता को भटकने"...
तक नही दे रहा था ...कम से कम 100 से ज्यादा आक्रांताओं को अब तक वो मार चुके थे..दुश्मन उनसे भयभीत होने लगे ..फिर वही सुलतान ने छल नीति का सहारा लेकर किले और बाघ सिंह जी को चारों तरफ से घेर लिया ..और किले के दरवाज़े पे ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे ।
तक तक रानी कर्णावती अंदर साका कर चुकी थी ...सारी मेवाड़ी वीरांगनायें अग्नि में सम्माहित हो चुकी थी ।
ये शायद इतिहास का एकलौता युद्ध है जिसको लड़ने वाले उसका नतीजा जानते थे ...राजमाता कर्णावती भी और बाघ सिंह देवलिया जी भी ..वो फिर भी लड़े ..अपने सम्मान के लिए ...
ये शायद इतिहास का एकलौता युद्ध है जिसको लड़ने वाले उसका नतीजा जानते थे ...राजमाता कर्णावती भी और बाघ सिंह देवलिया जी भी ..वो फिर भी लड़े ..अपने सम्मान के लिए ...
मेवाड़ी वीरांगनाओ के लिए ...दुष्ट..पापी और ज़ाहिल कौम वालो से ।
मेवाड़ का मान अटल है हमेशा ..किले के उसी दरवाज़ों पे जहां इन्होंने प्राण त्यागे थे आज इनकी समाधि हैं ..और 8 मार्च मेवाड़ के लिए हमेशा के लिए एक मनहूस दिन बन गया ।
रानी कर्णावती ...महाराणा प्रताप की दादी थी ।
जय जय
मेवाड़ का मान अटल है हमेशा ..किले के उसी दरवाज़ों पे जहां इन्होंने प्राण त्यागे थे आज इनकी समाधि हैं ..और 8 मार्च मेवाड़ के लिए हमेशा के लिए एक मनहूस दिन बन गया ।
रानी कर्णावती ...महाराणा प्रताप की दादी थी ।
जय जय
