विभीषण; हमेशा सत्य और धर्म के पक्ष में खड़ा रहा।

कुंभकर्ण का जीवन निद्रा और भोजन से ओतप्रोत रहा।

रावण; व्याभिचार, क्रोध और भ्रष्टाचार का उदाहरण था।

वाल्मीकि जी रावण को तमस्, कुंभकर्ण को रजस् और विभीषण को सत् के प्रतीक के रूप में निरूपित करते हैं। »»»
स्वाभाविक है कि तमोगुणी रावण का अंत निश्चित था, रजोगुणी कुंभकर्ण की दुर्गति उसके प्रमाद प्रिय स्वभाव के कारण हुई और विभीषण को अपनी सद्गुणी प्रकृति ने लंकाधिपति बनाया। »»
रावण, कुंभकर्ण और विभीषण के पिता ऋषि थे और माता राक्षस! रावण में माता के संस्कार उतरे, विभीषण में पिता के और कुंभकर्ण में माता-पिता दोनों के गुणों का मिश्रण हुआ। »»
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम स्वयं विष्णु के अवतार थे, लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे लेकिन भरत और शत्रुघ्न कौन थे?

भरत और शत्रुघ्न को शंख और सुदर्शन चक्र के रूप में विष्णु के दो बाहु माना जाता है। शंख सकारात्मकता का प्रतीक है और सुदर्शन चक्र संकल्प और दूरद्रष्टि का प्रतीक है। »»
रावण के सभी विचारों को शस्त्रों इत्यादि के रुप में साकार कुंभकर्ण करता था वैसे भी रजो गुण क्रिया का प्रवर्तक होता है और शारीरिक-मानसिक दुःखों का कारण भी होता है। »»
मुझे पता है कि Memes के युग में इस बकवास विश्लेषण को कोई 🔔 भी नहीं पढ़ेगा। फिर भी मैंने चेप दिया है तो झेलो।
कुंभकर्ण लंबे समय तक सोता था और जब जागता था तब रावण के विचारों को मूर्त स्वरुप देता था। कुंभकर्ण खुद वैज्ञानिक था और लंका के R&D department का head था। https://twitter.com/ShuklaAnchal_/status/1249917382178439168?s=19
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