. @hesivh :
तबलीगी जमात आज दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है। इस के जलसों में दस लाख से अधिक मुसलमान जुटते हैं। लेकिन कितने लोग जानते है कि इसे सब से बड़ी ताकत महात्मा गाँधी से मिली थी?..2
तबलीगी जमात आज दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है। इस के जलसों में दस लाख से अधिक मुसलमान जुटते हैं। लेकिन कितने लोग जानते है कि इसे सब से बड़ी ताकत महात्मा गाँधी से मिली थी?..2
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प्रो. मुमताज अहमद के अनुसार खलीफत आंदोलन का सबसे अधिक लाभ जिन नेताओं को मिला, उस में तबलीगी जमात के संस्थापक मौलाना मुहम्मद इलियास भी थे। गाँधीजी द्वारा ही ‘खलीफत जिहाद’ देश-व्यापी तूफान बना था। उसी तूफान ने यहाँ आम मुसलमानों में वह जज्बा भरा, जो उन में पहले न था..
प्रो. मुमताज अहमद के अनुसार खलीफत आंदोलन का सबसे अधिक लाभ जिन नेताओं को मिला, उस में तबलीगी जमात के संस्थापक मौलाना मुहम्मद इलियास भी थे। गाँधीजी द्वारा ही ‘खलीफत जिहाद’ देश-व्यापी तूफान बना था। उसी तूफान ने यहाँ आम मुसलमानों में वह जज्बा भरा, जो उन में पहले न था..
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उसी दौरान महात्मा गाँधी ने इस्लाम को ‘नोबल फेथ’ की संज्ञा देकर हिन्दुओं को नैतिक रूप से भी निःशस्त्र कर दिया। यह एक दूरगामी मार साबित हुई..उस से पहले तक यहाँ वही था, जो उन्होंने सदियों से, विभिन्न सुलतानों, बादशाहों, सूफियों, आदि के समय खुद देखा-झेला था।
उसी दौरान महात्मा गाँधी ने इस्लाम को ‘नोबल फेथ’ की संज्ञा देकर हिन्दुओं को नैतिक रूप से भी निःशस्त्र कर दिया। यह एक दूरगामी मार साबित हुई..उस से पहले तक यहाँ वही था, जो उन्होंने सदियों से, विभिन्न सुलतानों, बादशाहों, सूफियों, आदि के समय खुद देखा-झेला था।
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गाँधी से ठीक पहले सब से बड़े हिन्दू स्वामी विवेकानन्द हुए। उनकी समीक्षा पढ़ें। बाद में भी, श्रीअरविन्द, टैगोर, अंबेदकर ने वही सच कहा। मगर तब तक गाँधीजी और कांग्रेस, सस्ती राजनीति के फेर में, इस्लाम को सदैव केवल सलामी देते रहने के लिए हिन्दुओं को मजबूर कर चुके थे।
गाँधी से ठीक पहले सब से बड़े हिन्दू स्वामी विवेकानन्द हुए। उनकी समीक्षा पढ़ें। बाद में भी, श्रीअरविन्द, टैगोर, अंबेदकर ने वही सच कहा। मगर तब तक गाँधीजी और कांग्रेस, सस्ती राजनीति के फेर में, इस्लाम को सदैव केवल सलामी देते रहने के लिए हिन्दुओं को मजबूर कर चुके थे।
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गाँधीजी ने आर्य समाज के शुद्धि अभियान की भर्त्सना करके उसे भी बंद करवाया। जबकि वही तबलीगी जमात के काम की एक मात्र शान्तिपूर्ण काट थी। जब स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या हुई, तब भी गाँधी जी ने हत्यारे तबलीगी अब्दुल रशीद को बार-बार अपना ‘भाई’ कहा। उलटे श्रद्धानन्द की ही आलोचना की।
गाँधीजी ने आर्य समाज के शुद्धि अभियान की भर्त्सना करके उसे भी बंद करवाया। जबकि वही तबलीगी जमात के काम की एक मात्र शान्तिपूर्ण काट थी। जब स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या हुई, तब भी गाँधी जी ने हत्यारे तबलीगी अब्दुल रशीद को बार-बार अपना ‘भाई’ कहा। उलटे श्रद्धानन्द की ही आलोचना की।
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इन सब से तबलीगी जमात, उस की सरपरस्त जमाते उलेमा को कैसी ताकत मिली – और किस तरह हिन्दू वैचारिक रूप से भी असहाय बना दिए गए – यह नहीं समझने वाले इस्लाम संबधित किसी विषय पर बोलने के अधिकारी नहीं हैं..काफिरों के हित की दृष्टि से।
इन सब से तबलीगी जमात, उस की सरपरस्त जमाते उलेमा को कैसी ताकत मिली – और किस तरह हिन्दू वैचारिक रूप से भी असहाय बना दिए गए – यह नहीं समझने वाले इस्लाम संबधित किसी विषय पर बोलने के अधिकारी नहीं हैं..काफिरों के हित की दृष्टि से।
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इसलिए जो मुस्लिम-काफिर को ‘समान’ नजरिए से देखते हैं, उन्हें सावधानी रखनी चाहिए। वरना सदैव काफिर की हानि होती है। गत सौ सालों से 99% मामलों में यही होता रहा है। इसे खुद परखते रहें। यह एक चेतावनी भी है ताकि, बकौल गालिब, ‘‘न कहियो फिर कि गाफिल थे।’’
- शंकर शरण
इसलिए जो मुस्लिम-काफिर को ‘समान’ नजरिए से देखते हैं, उन्हें सावधानी रखनी चाहिए। वरना सदैव काफिर की हानि होती है। गत सौ सालों से 99% मामलों में यही होता रहा है। इसे खुद परखते रहें। यह एक चेतावनी भी है ताकि, बकौल गालिब, ‘‘न कहियो फिर कि गाफिल थे।’’
- शंकर शरण