कोरोना जो अच्छे बुरे दिन दिखा रहा है वह तो है ही, इस दौर ने सरकार से अफसर और अफसर से जनता के बीच के संवाद की जो खाई है उसे शीशे की तरह साफ कर दिया.
शुद्ध हिन्दी इस्तेमाल करने के चक्कर में प्रशासन आदेश में लिखेगा & #39;प्रभावित क्षेत्र& #39;, बोलेगा & #39;हॉटस्पॉट& #39;.आदेश कलेक्ट्रेट से आएगा लेकिन चिट्ठी पर लिखा होगा- & #39;समाहरणालय.& #39;
जिस दौर में सबसे आसान कम्यूनिकेशन की जरूरत है उस वक्त हमारा प्रशासन, हमारी सरकारें, अपनी भाषाई दक्षता का परिचय दे रही हैं. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि देश में 40% लोग हिन्दी बोलते हैं. शाम को जब प्रेस वार्ता होती है तो अंग्रेजी सुनाई देती है.
जिसे सिर्फ हिन्दी या सिर्फ मलयाली या सिर्फ बंगाली आती होगी वह आपकी अंग्रेजी की दक्षता का क्या करे? स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट सिर्फ अंग्रेजी में जानकारी दे रही है. (सिर्फ कोविड-19 डेडिटेकेटड पन्ने की बात) प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो कोरोना पॉजिटिव को & #39;सकारात्मक मामले& #39; लिख रहा है
यह दौर अपनी भाषाई दक्षता दिखाने का नहीं है. आसान से आसान भाषा में लोगों तक संदेश पहुंचाए जाएं. राजभाषा विभाग भी काम करे. अन्य राज्यों के सचिवालयों से सेंट्रल की पीसी का अनुवाद हो ताकि लोगों तक सही संदेश पहुंचे.
प्रधानमंत्री हिन्दी में बोलते हैं तो उसका भी अनुवाद पीआईबी की अन्य भाषाई वेबसाइट्स पर मौजूद रहता है. कम से कम पीआईबी के ही अन्य केंद्र सेंट्रल की पीसी का अनुवाद कर दिया करें!
ऐसा नहीं है यह अव्यावहारिक है. राज्य अपनी भाषाओं में अपना बुलेटिन जारी करते हैं, कम से कम सेंट्रल को भी इसी तरह आगे आना चाहिए. इस मामले में भी फिलहाल यूपी अच्छा काम कर रहा है. उर्दू, अंग्रेजी और हिन्दी में मुख्यमंत्री के आदेश अपलोड किये जा रहे हैं.
यह जान लीजिए कि कठिन दौर में भाषाई दक्षता काम नहीं आती.