कल कही किसी का ट्वीट देखा जिसमे लिखा था कि" ब्रो हम रंग दे बसंती देख कर बड़े होने वाली पीढ़ी है,हम विरोध करेंगे ही" इसी फ़िल्म में एक डायलाग और था कि"कोई देश परफेक्ट नही होता,उसे बनाना पड़ता है" शायद लिखने वाले ने सिर्फ अपने नजरिये से बात को समझा होगा,पर चलिए वर्तमान में आते है
लॉक डाउन चल रहा है,कोरोना वायरस के चलते,लगभग सभी की तरह मैं भी घर मे बैठा हूँ,दिन भर टीवी देखता हूँ,या सोशल मीडिया पर चक्कर काटता रहता हूँ,सोशल मीडिया पर दिन भर अलग अलग तरह के एकाउंट्स,चाहे वो व्यक्तिगत हो या आधिकारिक, फोटो और जानकारी शेयर करते रहते है कि कहा कौन मुसीबत में है
कहा कौन किसकी मदद कर रहा,कही पुलिसवाले मानवता धर्म निभा रहे तो,तो कही संस्थाएं भी, और कही सामान्य देशवासी भी, कुछ लोगो को छोड़ कर ,जिन्हें ऐसे समय मे भी कमियां ढूंढनी है,गलतियां निकालनी है,बाकी सभी कंधे से कंधा मिला कर इस महामारी से लड़ने का सकारात्मक प्रयास कर रहे ,पर फिर ...
मैं 2014 के पहले के समय मे चला जाता हूँ,सोचता हूँ कि क्या अगर ये संकट उस समय आया होता तो देश इतनी ही मजबूती से सामूहिक रूप से इस संकट का सामना कर पाता ?क्या हमारी पुलिस जो आज प्रशंसा की पात्र है ये ऐसी ही होती ?क्या इतना ही सजग प्रशासन होता ? क्या देशवासियों में यही एकता दिखती ?
आप मानिए या न मानिए,आप चाहे लाख गालिया दीजिए,लाख आरोप लगाए पर बदलाव तो आया है,यही बदलाव जो किसी ने सोचा था ना था,की देश बदल सकता है ,लोग बदल सकते है,कुछ अपवादों को छोड़ दे तो ये देश आज एक इकाई के रूप में नजर आ रहा,बदलाव आया है,और इसका श्रेय किसे जाता है ये आप सब जानते है 🙂
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