Can this society ever see a revolution, when we won't fall prey to bigotry & people would not 'communalize' even in the times of Coronavirus! For a change, a thread in Hindi, now
*15 लाख लोग फ्लाइट्स से भारत लौटे दो महीने में, ध्यान नहीं दिया गया, स्क्रीनिंग पर ख़ास तवज्जोह नहीं
जनवरी 30 को कोरोना वायरस हिंदुस्तान में आ चुका था, मगर पूरा फरवरी निकल गया. मार्च में भी पॉलिटिक्स चलती रही, सरकार गिराने और बनाने में लगे रहे, आखिर मध्य प्रदेश बड़ा सूबा है. कोई सीरियसनेस थी!
केरल में कोरोना फैला, टेस्टिंग शुरू हुई, ये कौन लाया था? विदेश से फ्लाइट से आने वाले. कनिका हों या आईएएस अफसर मध्य प्रदेश में, या तो खुद आये या बाहर से कोई रिलेटिव आया था जिसे छुपाया गया और इससे इंफेक्शन बढ़ा. जब अंदाजा हुआ कि दुसरे देशों में सैकड़ों लोग मरना शुरू हो गए हैं तो
सारी लापरवाही और जमात की बात शुरू हो गयी. जबकि कोरोना चीन से अमरीका और पूरे यूरोप में चुका था. डोमेस्टिक फ्लाइट्स पर रोक तो और भी बाद लगाई गयी! जमात के जब के वीडियो की बात हो रही है तब का है जब देश में क्या आलम था, विधायक बंगलोर से भोपाल आ रहे थे, शपथ की तैयारियों में कई दिन थे
लेकिन जब अंदाजा हुआ, कोरोना खेल नहीं, तो जमात पर सारा ब्लेम शिफ्ट कर दिया. टीवी चैनल 24 घंटे यही दिखाने लगे और जो लाखों लोग पूरे मुल्क में आ चुके थे फ्लाइट्स के ज़रिये विदेश से, उनकी टेस्टिंग और स्क्रीनिंग के बजाये एक छोटे ग्रुप को टारगेट कर लिया.
जानते हुए...
कि मरकज़ थाने से कितना क़रीब है, हर जानकारी सरकार को है, जब लॉक डाउन हो गया और एक दम ट्रेनें, बसें सब बंद हो गयीं तो क्या
होता. बाक़ी लोग तो अपनी जगह 'फंसे' थे, मगर मरकज़ के लोग 'छुपे' हुए हो गए. ऐसे कार्टून और वीडियो चलाये गए जिससे सारा ब्लेम और गुस्सा इधर शिफ्ट हो जाये
और पॉलिसी मेकर्स की कमज़ोरी, ध्यान न देना, डिलेड रिस्पॉन्स, सब कुछ लोग भूल जाएँ. हुआ भी यही. हर जगह जिस चैनल, जिस अख़बार की जो मर्ज़ी आयी वह छापने-दिखाने लगा, 'थूक रहे हैं, गोश्त मांग रहे हैं, खुले में शौच कर रहे हैं'. आखिर, पुलिस-प्रशासन को जगह जगह ख़बरों का खंडन करना पड़ा.
मगर हमारे समाज में ये कौन लोग हैं जो महामारी को भी कम्युनलाइज कर लेते हैं और कई लोग इस सब को मानने को तैयार बैठे हैं. देश की फ़िक्र छोड़, बीमारों का इलाज, डॉक्टरों-नर्सों की परेशानियां, फंड्स और फैसिलिटीज़ की कमी, जनता की मुसीबत, सब एक तरफ, लोग पूरे समुदाय से नफरत, बायकॉट..
जैसी बातें लिखने में मशगूल हो जाते हैं! जमात की या
जिस की जितनी गैर- ज़िम्मेदारी है उतनी बात बिलकुल कहिये मगर एक तरफ़ा सारा ब्लेम धरना और सरकारों की नाकामी को ढकने के लिए और इस सब की आड़ में वही हिन्दू-मुस्लिम को हवा देना, जब कि ऐसी महामारी फैली है, बेहद शर्मनाक है
मुझे ये कहने में कोई हिचक नहीं कि मीडिया ने देश और समाज के भरोसे को तोड़ा. इन्फॉर्म के बजाये मिस-इन्फॉर्म किया, मुद्दों से भटकाया और एक ऐसे अँधेरे की तरफ ले जा रहा है, जहां से वापसी आसान नहीं. मैं खुद मीडिया का हिस्सा होने के नाते साफ़ कहता हूँ कि हम इस देश को कुछ दे नहीं पाए...
मगर इस समाज को बिगाड़ने मेंं ज़रूर रोल अदा किया. ये ट्वीट्स लिखते वक़्त आज भी जो हैशटैग चल रहा है और जो अपने आप मुझे सिम्बल टाइप करने पर नज़र आया वह #CoronaJihad है. प्रायर्टीज समझ में आ सकती हैं
#Media #Journalism #Coronavirus #Communalism #IndianMedia #CoronavirusOutbreakindia
PS: जमात से मोहब्बत नहीं मगर सब कुछ छोड़ कर सिर्फ उसे 'सोल विलेन' बना कर पेश करना और उसकी आड़ में सारे फेलियर, सारी विज़न की नाकामी छुपाना, वही हिन्दू Vs मुस्लिम का गेम शुरू करना क्यूंकि अवाम भी इसमें फँस जाता है, बहुत तकलीफदेह है. अफ़सोस, ये खेल इस समाज में हर बार चल जाता है
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