और मै आपको पढ़वा देता हूं हिंदी में...

वक़्त निकालिएगा थोड़ा और तसल्ली से पढ़िएगा। आज के समय के हिसाब से बहुत उपयुक्त पोस्ट है और आप को सच में सोचने पर मजबूर करेगा। https://twitter.com/natashjarathore/status/1246428232208928773
डिस्क्लेमर : दोस्तों यह एक सिर्फ एक राजनीतिक पोस्ट नहीं है बल्कि उस से अधिक है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप राईट विंग के समर्थक हैं या लेफ्ट विंग के, आप इस पोस्ट को सिर्फ इसलिए पढ़िए कि आप इन सब से ऊपर एक इंसान भी हैं।
मैं मानता हूँ कि मैं किसी भी मामले में कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ, लेकिन आज मैं अपने जीवन के कुछ अनुभवों, अपने विचारों, अपनी समझ को आपके साथ बाँटना चाहता हूँ।
मैं आप सभी के साथ, हमारे बीच वर्तमान में मौजूद कई मूलभूत समस्याओं को दूर करने के कुछ उपाय बांटना चाहता हूँ जिससे हमारा अस्तित्व और सह-अस्तित्व दोनो ही अधिक खुशहाल बन सके।
आइये पहले तो इस बात को ईमानदारी से स्वीकार करें कि , विशेष रूप से ट्विटर पर, अब हम टूटने की कगार पर पहुँच चुके हैं और अगर इस को रोकना है तो लेफ्ट और राईट दोनो को ही आगे बढ़ कर इस पर काम करना होगा।
सर्वप्रथम आज हम सभी को ये समझने की आवश्यकता है कि चाहे कुछ भी हो पर आखिरकार हम हैं तो एक ही देश के निवासी , हैं तो एक ही बड़े परिवार के सदस्य और इस बड़े परिवार की अलग-अलग विचारधाराओं के बावजूद भी आज हमें, इस समय सौहाद्रपूर्वक संबंधों को बनाए रखने की आवश्यकता है।
मैंने लगभग एक सप्ताह पहले अपना पहला राजनीतिक लेख लिखा था। उस लेख में मैंने पीएमओ द्वारा किए जा रहे प्रयासों का खुलकर समर्थन किया था और घोषणा की थी कि मुझे  “भक्त” कहे जाने पर कोई ऐतराज नहीं है ।
वो ट्वीट श्रुंखला  कुछ हद तक वायरल हो गयी और बहुत लोगों ने इसे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप पर साझा किया । मुझे बहुत सारे संदेश मिले जिनमे लोगों ने मुझे अपनी अभिव्यक्ति, सच्चाई  और ईमानदारी के लिए सराहा। ये मेरे लिए वाकई अद्भुत था।
समर्थन या यूं कहिये कि आपके विचारों को मान्यता मिलना एक ऐसा दानव है जो आपके अंदर आत्म-त्रुष्टि और अहंकार ले आता है । यह लगभग ऐसा था जैसे वर्षों तक घुटन और खामोशी महसूस करने के बाद मुझे एक नयी आवाज मिली है , मैं चीखना चाहता था, सब कुछ तार-तार कर देना चाहता था।
मैं दूसरों  को दोष देना चाहता था । किन्तु मैंने ये महसूस नहीं किया कि मैं भी कट्टरता और पाखंड की सीढ़ी पर पैर रख चुका था जब मैंने लोगों से कहना शुरू किया था कि आज की इस स्थिति के लिए “वो लोग” जिम्मेदार हैं और “वो लोग”  नरक भोगेंगे।
शुक्र है कि मुझे उस आत्म तृष्टि वाले राक्षस से जीतने में एक दिन से भी कम समय लगा और फिर मैंने स्वयं अपने बारे में सोचा कि मैं ऐसा क्यों कर रहा था?

क्या कारण था??
मुझे समझ में आ गया कि इन सब से मुझे महसूस होने लगा था कि मैं बहुत “पावरफुल” हूँ, इसने मुझे ये भी महसूस कराया कि सिर्फ मैं ही सही था। इन सबसे मैं अपने आप को श्रेष्ठ महसूस करने लगा, मुझे लगा कि शायद मेरा एक उद्देश्य था, जिसकी पूर्ती इस पोस्ट के ज़रिये, मैं कर पाने में सफल रहा हूं।
मैं अपने को एक विजेता की तरह महसूस करा रहा था । मुझे लग रहा था कि मैं अपने देश के हित की रक्षा कर रहा हूँ जबकि मुझे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि असल में तो मैं इसे और भी नुक्सान पहुंचा रहा हूँ ।
भड़काऊ, घृणित और घृणास्पद बातें कहकर मैं "अपने और उनके बीच” में अधिक विभाजन पैदा कर रहा हूँ । 

ये तो तय है कि आज हम में से प्रत्येक व्यक्ति हर समय, हर दिन सिर्फ लेफ्ट और राईट , “वो और हम” में उलझ कर रह गया है ।
आप ऊपर से भले ही ना मानें पर दिल की गहराइयों से आप स्वीकार करेंगे कि हम में से हर एक, किसी न किसी बिंदु पर, ऐसा कुछ किया है।
हम इस उम्मीद में आग को हवा देते रहते हैं कि हम इसे बुझा देंगे, जबकि हमें ये एहसास ही नहीं हो रहा है कि हम केवल इसे और अधिक बढ़ने के लिए हवा दे रहे हैं।

आज हम सभी को अपने आप से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछना होगा है कि हम एक-दूसरे से इतना गुस्सा और निराश क्यों हैं?
लगाइए अंदाज़ा?
सच तो यह है, हम सभी चाहते हैं देश हमारा आगे बढ़े, उन्नति , प्रगति की राह पर आगे बढ़ता चला जाए । 

आप इस बात से इनकार करेंगे ?
नहीं ना ?

तो फिर जब ये यह विचार एक सामान्य आधार है तो हमें इसी को लेकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है या नहीं ?
हमारा देश कैसे आगे बढ़े, इस के बारे में हमारे विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मैं निश्चित हूँ कि इन सब विचारों में कुछ तो समानताएं होंगी ही और ये ही वो समानताएं हैं, जिन पर हमें काम करने की आवश्यकता है।
ओशो ने कहा था “तर्क सिर्फ एक वेश्या है और वो किसी के भी साथ जा सकता है। इसलिए जब भी कोई तर्क जीतता है, तो यह साबित नहीं होता है कि उसके पास सच्चाई है। वह केवल यह साबित करता है कि वह अपने तर्कों की प्रस्तुति करने में माहिर था।
और जब कोई तर्क में पराजित होता है, तो यह साबित नहीं होता है कि उसके पास सच्चाई नहीं है, होता ये है कि वो अपने तर्कों को चमत्कारी ढंग से सामने नहीं रख पाया। ना तो कुछ सत्य है और ना असत्य, यह सब सिर्फ एक खेल है ”
हम सभी इंसानों में एक दोष है कि हम सभी, कभी भी मौका आने पर जातिवादी, वर्गवादी, कट्टर और पाखंडियों का रूप धारण कर सकते हैं।
लेकिन इतना होते हुए भी हम सभी में कुछ अंतर भी हैं । 

हम में से कुछ ने अपनी चेतना को जागृत किया है ताकि हमारे उन विचारों को बाहर न आने दें। 

हम में से कुछ ने अपनी चेतना को इतना जागृत किया है और जान गए हैं कि ऐसा करना एक दोष है,जिसे ठीक करने की आवश्यकता है।
हम में से कुछ ने अपनी चेतना को इतना जागृत किया है कि यह हमारे निर्णय और राय को बदल न दें। 

लेकिन हम में से कुछ ही ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी चेतना इस प्रकार जागृत किया है कि वास्तव में वे सभी को जोड़ कर साथ लेकर आगे चल सकें, वही जिसे आप inclusiveness कहते हैं, उसको अपना सके।
आप सिर्फ एक क्षण के लिए फासीवाद, उदारवाद, समाजवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद आदि को भूल जाइए।

देखा जाए तो आज हम जिस स्थिति में हैं, उनमें से ये सब तो कुछ भी मायने नहीं रखता है।
आज की वास्तविकता ये है कि हम सभी के ऊपर मौत मंडरा रही है और आज आपको अपने आप से पूछने के लिए सिर्फ एक सवाल है –

“क्या आप एक मानवतावादी हैं?”
और आप ये तो मानेंगे ही कि पिछले दो हफ्तों में @PMOIndia ने जो भी कदम उठाए हैं, उससे यह स्पष्ट तो होता है कि, वो चाहे किसी भी विचारधारा के हों, उनके इरादे सिर्फ मानवता के पक्ष में हैं और हमें दिल से इसका समर्थन करने की जरूरत है।
अच्छा आप सभी ये बताइये कि क्या हम सब हर किसी, मानव समाज का भला चाहते हैं?

यदि आपका उत्तर हाँ है, तो मुझे , आपको , हम सभी को एक छोटी सी  एक्सरसाइज करने की आवश्यकता है:
जो लेफ्ट विंगर हैं , उनसे मैं इस बात पर विचार करने के लिए कहता हूँ कि

“यहां ऐसे लोगों का एक समूह है जो देश को आगे ले जाना चाहते हैं, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना चाहते हैं .....
ये समूह सिर्फ इतना चाहता है कि हमारे प्राचीन ज्ञान और विज्ञान जो आज दुनिया भर में इतने सारे लोगों की मदद कर रहा है उसे हम संजो कर रखें। वे किसी भी जाति, पंथ या धर्म का को झुकाना नहीं चाहते, वे सह-अस्तित्व में विश्वास रखते हैं और शांति से रहना चाहते हैं...
लेकिन , लेकिन उस समूह को अब एक डर है कि हमारी जो विशिष्टता है , हमारी जो एक छाप है उसे हम खो देंगे। ”
जो राईट विंगर हैं , उनसे मैं ये विचार करने के लिए कहता हूँ कि

“यहां ऐसे लोगों का एक समूह है जो जो देश को आगे ले जाना चाहते हैं, जो समानता, विविधता और समावेश में विश्वास करते हैं।
लेकिन डरते हैं कि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के नाम पर, विशिष्टता को संजोने के नाम पर उनके अधिकारों और स्वतंत्रता का हनन हो जायगा । वे डरते हैं कि खून-खराबा होगा और आज तक हम जैसे विभिन्नता में एकता को संभाल कर रखते हुए जीते आये  है, वो सब तहस नहस हो जायगा।"
देखा जाए तो असल में हम सभी भयभीत और असुरक्षित हैं और यह ऐसी असुरक्षाएं हैं जो किसी और के नहीं बल्कि सिर्फ हमारे दिमाग में जहर घोल रही हैं।
हमें लेफ्ट विंग और राईट विंग के मूलभूत अंतर को समझने की जरूरत है।

लेफ्ट विंग मूल रूप से भाषा और तर्क या कारणों पर काम करता है जबकि राईट विंग मुख्य रूप से अनुभूति (Perception) , भावुकता ( Emotion) या सहजबोध ( Intuition)  द्वारा संचालित है।
देखा जाए तो कोई भी सही नहीं है और कोई भी गलत नहीं है। 

१.भाषा (Language ) 
२.तर्क या कारण (and Logic/Reason) 
३.अनुभूति (Perception) , 
४.भावुकता (Emotion) या सहजबोध ( Intuition)

ये वो चार द्वार हैं, ये कार के वो चार पहिए हैं जो हमें इन विचार धाराओं को समझने में मदद करते हैं।
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि इन चारों के बिना, हम अपने ज्ञान में अधूरे हैं। सत्य ये है कि हमारी ताकत चीजों को अलग लेंस से देखने की हमारी क्षमता विकसित करने में निहित है।
मैं जो आगे कहने जा रहा हूँ , आपको हास्यास्पद विचार की तरह लग सकता है, लेकिन इसे आजमा कर देखें। हो सकता है कि ये काम कर जाए ।

आइये हम एक-दूसरे की असुरक्षा को समझें, मतभेदों को समझें और फिर आगे बढ़ने का संकल्प लें।
यदि आप किसी चीज़ से सहमत / सहमत नहीं हैं तो आपके लिए “गुड प्रैक्टिस” की एक सूची पेश कर रहा हूँ वो जैसे "गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस" होती है , वैसा सा ही कुछ है ये और मुझे विश्वास है कि ये बहुत हद तक हमारी मदद कर सकेगा।
1. जाति, लिंग, पंथ, रंग, धर्म या राजनीतिक रुख के आधार पर किसी व्यक्ति की प्रतिक्रिया    पर टूट न पड़ें।
2. किसी व्यक्ति पर “राष्ट्र-विरोधी” या  “फासीवादी” होने का आरोप न लगाएं। क्यूंकि ये तो तय है कि दोनो ही लोगों में ऐसे लोगों का एक समूह है जो देश को आगे ले जाना चाहते हैं और इस देश के लिए सर्वश्रेष्ठ होते देखना चाहते हैं।
3. अपने शब्दकोष से “लिबरांडू”, “संघी” , “भक्त” और “सिकुलर” शब्द मिटा दें। 

4. व्यंग्य तो करें पर मजाक न उड़ायें , आक्रामक भी ना बनें और तुलना तो बिलकुल ही ना करें।
5. लोगों को उनकी आस्था या विश्वास के लिए अपमानित ना करें । (यहां तक कि अगर आपको लगता है कि वो बहुत ही हास्यास्पद या बेतुकी आस्था है, तो भी )

6. किसी को हिंसा की धमकी न दें।
7. समाचार और सूचनाओं को सिर्फ इसलिए न फैलाएं क्योंकि ये आपकी विचारधारा से मेल खाते हैं। किसी को आगे भेजने से पहले अपनी खबर को सत्यापित अवश्य करें और यदि आपको लगता है कि ये समाचार या मजाक एक निश्चित समुदाय के प्रति घृणा पैदा करेगा तो कृपया इसे साझा न करें।
और अगर फिर भी आपको कोई चीज़ परेशान कर रही है तो,

1. यदि आप इसे अनदेखा कर सकते हैं, तो कृपया इसे अनदेखा करें।

2. उस जानकारी के बारे में तथ्यों का पता लगाएं , प्रश्न पूछें, अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करके सही स्थिति को समझने का प्रयास करें।
3. केवल समस्या ही नहीं बल्कि समस्या का सुझाव या समाधान भी प्रस्तुत करें।

मुझे पता है, यह इस स्थिति में वास्तव में बहुत ही कठिन है जबकि हम दूसरे व्यक्ति को बस ठोक देना चाहते हैं। विशेष रूप से मेरे जैसे व्यक्ति के लिए, जिसके शब्द लोगों को तुरंत नाराज़ कर देते हैं।
लेकिन एक कोशिश कर के देखने में क्या हर्ज है?

आइये एक दूसरे के साथ चल कर देखने की कोशिश करते हैं , एक दुसरे के साथ शामिल होने की कोशिश करते हैं।

भगवान् न करे अगर आज की रात ये हम सभी की आखिरी रात है तो क्या यही विरासत हम अपने देश के लिए छोड़ कर जाना चाहते हैं?
सोचिये इसके बारे में ,आपके पास सोचने के लिए अभी भी दस दिन हैं।
आगे आने वाला भारत कैसा होगा हमको ये आज तय करना है और ये सिर्फ मेरे हाथ में नहीं है , ये आपके भी हाथ में है।
हम सभी की ये साझा जिम्मेदारी है।
है ना ?
हम वही हैं जिन्होंने शून्य और संख्या प्रणाली की खोज की।

हम ही 1895 में वायरलेस कम्युनिकेशन की खोज करने वाले व्यक्ति हैं।

हम वही हैं जिन्होंने USB का आविष्कार किया है।

हम वही हैं जिन्होंने स्टील और मेटल को इस्तेमाल करने के तरीक ढूंढें हैं ।
हम वे हैं जिन्होंने दुनिया को दिखाया कि कपास और जूट का उपयोग कैसे किया जाता है।

हम ने ही दुनिया को संगठित शिक्षा प्रणाली के बारे में बताया ।

हम ही हैं जिन्होंने दुनिया को योग और आयुर्वेद दिया है।
हम वे हैं जिन्होंने 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में मोतियाबिंद सर्जरी का आविष्कार किया था।

हम वे हैं जिन्होंने कुष्ठ रोग और लिथियासिस का इलाज पाया।

हम पोलियो को मिटाने वाले हैं।

और हम वही हैं जिन्होंने मूल रूप “वन-नेस” और “अनेकता में एकता” के सही अर्थ को समझा है।
आइये हम अपने और आपके, इन सभी बड़े-छोटे मतभेदों को भुला देते हैं। यदि एक छोटा अदृश्य वायरस दुनिया को बदल सकता है, तो निश्चित रूप से, समझदार भारतीयों का विशाल समूह खुद को तो बदल ही सकता है?

आइये हम सभी भारतवासी, एक साथ खड़े होकर, इस चुनौती को स्वीकार करते हैं।
आइये इस घृणा को हमेशा के लिए मिटा डालते हैं,आइये एक रोशनी की किरण लेकर आते हैं।
आइये पांच अप्रैल की रात नौ बजे ज्योति प्रज्जवलित करते हैं ,अपनी विचारधारा के प्रतीक के रूप में नहीं,बल्कि एक संकेत के रूप में कि हमारी अलग मान्यताओं और विचारधाराओं के बावजूद भी
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