पुष्प वाटिका में राम सीता का मिलन, और हमारी आंखों की पलकों के आजतक झपकने के पीछे एक कहानी है। कोई सुनने वाला है तो सुनाऊं।
रामचरितमानस का एक एक शब्द कई महासागर के बराबर है तो ये कहानी शुरू होती है उसी मानस की एक चौपाई के एक शब्द से........
कभी गौर किया आपने कि हमारी आंखों की पलकें लगातार क्यूं झपकती रहती हैं तो उसके पीछे एक मानस का चरित्र है । आइए बताता हूं
कभी गौर किया आपने कि हमारी आंखों की पलकें लगातार क्यूं झपकती रहती हैं तो उसके पीछे एक मानस का चरित्र है । आइए बताता हूं
श्रीराम अपने भाई लखन और गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुरी धनुष यज्ञ देखने आए हुए हैं, जनकपुरी की भव्यता देखकर श्रीराम गुरु विश्वामित्र से नगर भ्रमण की आज्ञा लेकर निकल पड़ते हैं नगर दर्शन को और पहुंचते हैं पुष्प वाटिका में।
उधर दूसरी तरफ माता सिया अपनी सखियों के साथ गौरा पूजन के लिए
उधर दूसरी तरफ माता सिया अपनी सखियों के साथ गौरा पूजन के लिए
निकलती हैं, पूजन के लिए पुष्प लेने वाटिका में जाती हैं, वहां उन्हें उनकी सखियां बताती हैं कि अयोध्या से आए हुए राजकुमार जो समस्त विश्व का मन मोह लेने वाले हैं उसी पुष्प वाटिका में उपस्थित हैं , माता का मन अकुलाने लगता है प्रभु श्री राम के दर्शन करने के लिए तभी माता के मन की बात
समझकर प्रभु माता के सामने आते हैं और मिलन होता है माता सीता और प्रभु श्रीराम का,
अब श्रीराम और माता सीता एक दूसरे को एकटक निहारते रहते हैं बिना पलक झपकाए,
पलक न झपकने की वजह बाबा तुलसी ने एक चौपाई में बताई है।
"भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल।।"
अब श्रीराम और माता सीता एक दूसरे को एकटक निहारते रहते हैं बिना पलक झपकाए,
पलक न झपकने की वजह बाबा तुलसी ने एक चौपाई में बताई है।
"भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल।।"
यहां चौपाई में निमि शब्द का प्रयोग हुआ है, निमी कौन थे?
मनु के पुत्र इक्ष्वाकु, इक्ष्वाकु के 100 पुत्रों में एक थे निमि, यही मिथिला के प्रथम राजा हुए , निमि महाराज ने एक यज्ञ के पुरोहित के रूप में वशिष्ठ जी को आमन्त्रित किया उस समय वशिष्ठ जी इन्द्र का यज्ञ संपन्न करा रहे थे
मनु के पुत्र इक्ष्वाकु, इक्ष्वाकु के 100 पुत्रों में एक थे निमि, यही मिथिला के प्रथम राजा हुए , निमि महाराज ने एक यज्ञ के पुरोहित के रूप में वशिष्ठ जी को आमन्त्रित किया उस समय वशिष्ठ जी इन्द्र का यज्ञ संपन्न करा रहे थे
अतः निमि ने गौतम आदि ऋषियों द्वारा यज्ञ संपन्न करा लिया, जब यह जानकारी वशिष्ठ की हुए तो उन्होंने नि मि को श्राप दिया कि जाओ आज से तुम देह विहीन हो जाओ, निमी ने भी वशिष्ठ को भष्म होने का श्राप दिया, दोनों वहीं भस्म हो गए, ऋषियों ने नि मि के शरीर को यज्ञ संपन्न होने तक सुरक्षित रखा
और यज्ञ पूर्ण होने के बाद अरणी ( एक लकड़ी जो आग उत्पन्न करने के काम में आती है) नामक लकड़ी से निमी के शरीर को मथा गया जिससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसे जनक, विदेह कहा गया, आप लोगों की एक शंका समाधान कर दूं यह जनक सीता के पिता नहीं है । दरअसल निमी के शरीर से जो पुत्र हुआ
उसे जनक और विदेह कहा गया, मथने से उत्पन्न होने के कारण उसे मिथी तथा राज्य को मिथिला कहा गया। अब आगे चलकर जनक और विदेह कुल नाम बन गया जो हर राजा अपने लिए प्रयुक्त करता था। सीता के पिता का नाम सीर ध्वज था उन्हें उनके कुल नाम से जाना जाता था इसलिए उन्हें विदेह और जनक कहा जाता था।
अब लौटते हैं नि मि पर , जब नि मि को श्राप मिला देह भस्म होने का तब उन्होंने देवताओं को प्रार्थना की , देवताओं ने प्रसन्न होकर उन्हें जीवनदान दिया लेकिन यह कहा आप बिना देह के है रहेंगे, नि मि महाराज ने जब रहने के लिए जगह मांगी तो उन्हें पलकों पर रहने के लिए कहा गया
तबसे वो हमारी पलकों पर रहते हैं और उनके भार के कारण हमारी पलकें लगातार झपकती रहती हैं।
अब आते हैं कि श्रीराम और सीता के मिलन के समय वो दोनो बिना पलक झपकाए एक दूसरे को एकटक कैसे निहारते रहे तो आध्यात्मिक दृष्टि से यह मतलब निकलता है कि नि मि जो सीता के पूर्वज थे उन्होंने
अब आते हैं कि श्रीराम और सीता के मिलन के समय वो दोनो बिना पलक झपकाए एक दूसरे को एकटक कैसे निहारते रहे तो आध्यात्मिक दृष्टि से यह मतलब निकलता है कि नि मि जो सीता के पूर्वज थे उन्होंने
लज्जा स्वरूप पलकों के ऊपर से हटना उचित समझा क्यूंकि रिश्ते में वो सीता के बाबा लगते हैं उन्हें उस समय वहां रहना अनुचित लगा अतः उन्होंने पलकें कुछ समय के लिए त्याग दी ।
तभी मानस में बाबा तुलसी ने लिखा है कि।
"निमि तजे दीगंचल"
सियावर राम चन्द्र की जय
तभी मानस में बाबा तुलसी ने लिखा है कि।
"निमि तजे दीगंचल"
सियावर राम चन्द्र की जय

When @Shrimaan sir retweetes...it matters....it really matters
