प्रेम सागर रामानंद सागर के बेटे हैं। उन्होंने रामानंद सागर की बायोग्राफी ‘एन एपिक लाइफ : रामानंद सागर’ लिखी है। प्रेम ने इस बायोग्राफी में टीवी- फिल्म इंडस्ट्री और रामायण की मेकिंग से जुड़ी कई इंट्रेस्टिंग बातें बताई और कई राज़ खोले हैं। https://twitter.com/Shrimaan/status/944915423945900032
वहीं से उड़ा कर लाया हूं कुछ खास बातें रामानंद सागर साहब की आपके लिए-

1976 की बात है, रामानंद अपने चार बेटों (सुभाष, मोती, प्रेम और आनंद) के साथ स्विट्जरलैंड में थे।‘चरस’ फिल्म की शूटिंग चल रही थी। शाम हुई, काम निपटा तो रामानंद बेटों के साथ एक कैफे में जा बैठे।
गलाने वाली सर्दी पड़ रही थी, रामानंद सागर ने रेड वाइन का जग ऑर्डर किया तो एक फ्रेंच सा दिखने वाला शख्स वाइन ले आया। उसने लकड़ी का एक रेक्टेंगल बॉक्स खिसकाकर उनके सामने रख दिया, जिसमें सामने की तरफ लकड़ी के दो पल्ले लगे थे।

उस आदमी ने दोनों पल्ले खिसकाए और स्विच ऑन किया...
स्क्रीन पर कलर फिल्म चलने लगी। सभी हैरान थे क्योंकि वो रंगीन टीवी था। उन सभी ने कभी रंगीन टीवी पर फिल्म नहीं देखी थी।हाथ में रेड वाइन का गिलास लिए रामानंद बड़ी देर तक स्क्रीन निहारते रहे और मुस्कुरा दिए।
बस वही वो पल था, जब रामानंद सागर के मन में टीवी की तरफ मुड़ने का ख्याल आया..
जब नज़रें स्क्रीन से हटीं, तो बेटों को अपना फैसला सुना दिया।

"मैं सिनेमा छोड़ रहा हू। मैं टेलीविजन (इंडस्ट्री) में आ रहा हूं। मेरी जिंदगी का मिशन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोलह गुणों वाले श्री कृष्ण और आखिर में मां दुर्गा की कहानी लोगों के सामने लाना है।"
जब रामानंद ने ‘रामायण’ बनाने का ऐलान किया, तो लोगों का मिलाजुला रिएक्शन आया। बहुत लोगों ने उनके इस फैसले की आलोचना की, लेकिन वो तय कर चुके थे।
रामायण’ के बारे में सुनते ही दोस्तों ने भी हाथ खींच लिए थे....
रामानंद सागर ने ‘रामायण’ और श्री कृष्णा के पैम्फ्लेट छपवाए और घोषणा कर दी कि उन्हें वीडियो कैसेट्स के जरिए लॉन्च किया जाएगा। उनके बेटे प्रेम ने बायोग्राफी में ‘रामायण’ की तैयारी का एक किस्सा बताया है कि कैसे उनके दोस्तों ने भी इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकर अपने हाथ खींच लिए थे।
पापा ने दुनियाभर की टिकट खरीदी और विदेशों में बसे उनके अमीर दोस्तों की कॉन्टेक्ट लिस्ट पकड़ाई और अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए मुझे बिजनेस ट्रिप पर भेज दिया।

लेकिन उनके दोस्तों में से कई लोग इस प्रोजेक्ट को लेकर श्योर नहीं थे।
कुछ ने अपने सेक्रेटरी को इशारा करके मुझे विनम्रता से ऑफिस से बाहर करा दिया और एक करीबी दोस्त ने मुझे सलाह दी कि पापा को थोड़ा समझाओ कि क्या करने जा रहे हैं। महीने यहां से वहां घूमने के बाद मैं खाली हाथ वापस लौट आया।
रामानंद सागर के नज़रिये से ‘रामायण’ को खरीदने वाला कोई नहीं था..
'रामायण’ और ‘महाभारत’ को दूरदर्शन पर लाने को लेकर सरकार श्योर नहीं थी लेकिन डीडी के अधिकारियों के अपने तर्क थे।

उनका कहना था कि ये सीरियल हमारे आधिकारिक सांस्कृतिक महाकाव्य पर आधारित है जिसका धार्मिक होना जरूरी नहीं है।
खुद वाल्मिकी ने ‘रामायण’ में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का वर्णन एक इंसान के तौर पर किया है। ‘रामायण’ टेलीकास्ट होना शुरू हुआ।
लेकिन दिक्कतें अभी ख़तम नहीं हुई थी।
कुछ लोगों को ये सब खटक रहा था।
कांग्रेस में कई सत्ताधारियों को लग रहा था कि ‘रामायण’ का प्रसारण उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है।

ज़ाहिर है, सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल की तरफ से एक बड़ी आपत्ति आई।

उन्हें लगा कि हिंदू पौराणिक धारावाहिक हिंदू शक्ति को जन्म देगा, जिससे भाजपा का वोट बैंक बढ़ सकता है।
उन्हें डर था कि ‘रामायण’ हिंदूओं में गर्व की भावना पैदा करके भाजपा की सत्ता में आने की संभावनाएं बढ़ाएगा।
दूसरी ओर, सुनने में ये आ रहा था कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुद डीडी के अधिकारियों सुझाव दिया है कि ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे महान भारतीय महाकाव्यों का प्रसारण किया जाए।
लंबे वक्त तक दिल्ली के मंडी हाउस में बने डीडी हैडक्वार्टर और ब्यूरोक्रेसी में खींचतान चलती रही।

सागर साहब ने कई हफ्तों और महीनों तक दिल्ली में चक्कर लगाए। वो घंटों डीडी के दफ्तर और दूसरे अधिकारियों के ऑफिस के बाहर खड़े रहते थे और इंतजार करते रहते थे।
कई बार वो हफ्तों तक दिल्ली के अशोक होटल में सिर्फ इसलिए ठहरे रहते कि उनके पास कोई कॉल आएगा या उन्हें फलां अधिकारी का अपॉइन्टमेंट मिलेगा।लेकिन कोई पॉजिटिव रिजल्ट नहीं निकला।

एक बार वो सुबह-सुबह किसी ब्यूरोक्रेट के घर पहुंच गए। अधिकारी और उनकी पत्नी गार्डन में टहल रहे थे...
लेकिन उन्होंने कहा कि मीटिंग के लिए वक्त नहीं है।

सागर साहब के लिए ये शो एक ऐसी अंधेरी गुफा बन रहा था, जिसमें रोशनी की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी।
नतीजा रहा कि ‘रामायण’ के चार पायलट एपिसोड्स एक ही एपिसोड में सिमट गए जो आपने आज देखे 🤗
डीडी के क्लर्क का कहना था कि "इस आदमी को पता नहीं कि डायलॉग्स कैसे लिखे जाते हैं। सीरियल में भाषा को और बेहतर होने की जरूरत है"
रामानंद सागर के लिए ये बेहद शर्मिंदगी से भरा था।

नवंबर 1986 में नए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अजीत कुमार पंजा आए और चीजें बेहतर होती चली गई।
उन दिनों रामायण की प्रसिद्धि ऐसी थी कि रामानंद सागर के घर और नटराज स्टूडियो में साधुओं का आना-जाना लगा रहता था। लेकिन एक साधु ने रामानंद सागर को ऐसा ज्ञान दिया कि फिर उनका जीवन ही बदल गया।

इससे जुड़ा किस्सा भी जान लीजिए जो उनके बेटे ने बताया है।
"एक बार बहुत जवान सा दिख रहा साधु स्टूडियो आया था। पापाजी उससे मिलने गए और पूछा कि वो उसकी क्या मदद कर सकते हैं?
उसने कहा कि वो हिमालय में बसे अपने गुरू का संदेश लेकर आया है।"

पापा जी ने थोड़ा टालने की कोशिश की तो
अचानक साधु की आवाज और टोन बदलकर आदेश देने वाली हो गई।
पापाजी चौंक गए।
उसने कहा- कौन हो तुम? किस बात का घमंड है, मैं ये नहीं करता, मैं वो नहीं करता, तुम क्या समझते हो, तुम ‘रामायण’ बना रहे हो?
तुमको क्या लगता है कि तुम अपने आप ये कर रहे हो ?
साधु ने कहा कि भारत जल्द ही दुनिया में लीडर बनने जा रहा है और तुम जैसे कुछ और लोग इसे लेकर जागरुकता फैला रहे हैं। अपना काम करो और वापस आ जाओ उस दिव्य लोक में जहां से तुमको इसी कार्य के लिए भेजा गया था।
और फिर ये सीरियल देखा गया और इतना देखा गया कि लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गया। 25 जनवरी,87 को रामायण का पहला एपिसोड टेलीकास्ट हुआ। इसने टीवी इंडस्ट्री में इतिहास बना दिया। रामायण उन चुनिंदा सीरियल्स में से था, जिसे देखने के लिए परिवार तो क्या मोहल्ला-पड़ोस तक इकट्ठा हो जाता था।
दारा सिंह साहब की सबसे खास बात यह थी कि वह श्रद्धा से हनुमान के अपने किरदार को जीते थे।

कई फिल्मों में अभिनय करने और लोकप्रियता हासिल करने के बावजूद उनमें जरा सा भी घमंड नहीं था. स्टार जैसा एटीट्यूड तो बिल्कुल भी नहीं था।
उन कलाकारों में शुमार थे जो निर्माताओं को परेशान नहीं करते थे। उन्होंने रामायण के निर्माण के दौरान कभी किसी चीज के लिए शिकायत नहीं की।
वे जानते थे कि हनुमान के किरदार के लिए जो मास्क वे लगाते हैं उसे गोंद से चिपकाया जाता है और बार-बार उसे चिपकाने में परेशानी होती थी.
मेकअप में लगभग एक घंटा लग जाया करता था।वह मास्क रबर का बना होता था। उसे लगा कर वे खाना नहीं खा सकते थे।
आपको शायद विश्‍वास नहीं होगा, वे कभी खाने के लिए अपना मास्क नहीं हटाते थे।
पाइप के सहारे पानी पीते थे या फिर जूस,फिर पूरा पैकअप हो जाने के बाद ही वे मास्क उतारकर खाना खाते थे।
उनको पापाजी ( रामानंद जी) कहते थे कि वे खा लें, फिर मेकअप हो जायेगा।लेकिन वे कभी शूटिंग में डिले नहीं करवाना चाहते थे।

दारा सिंह के बारे में उस वक्त सभी जानते थे कि उनका डायट अलग है लेकिन वे कभी भी सेट पर डायट को लेकर कोई शिकायत नहीं करते थे। जो सभी खाते थे, वे भी वही खाते थे.
लेकिन अपने शरीर को लेकर बेहद अनुशासित थे।रोजाना दो घंटे तो वे सिर्फ व्यायाम ही करते थे। यही नहीं उनके शरीर के कई अंगों में चोट थी, जिसकी वजह से शूटिंग के दौरान उन्हें परेशानी होती थी।फिर भी वह भक्त हनुमान की तरह पूरी श्रद्धा से काम करते थे।
और फिर एक दिन ऐसा वाकया हुआ कि सब भौंचक्के रह गए।
आखिरकार उन्होंने सुग्रीव की चुनौती स्वीकार कर ही ली और फिर हुआ एक अविस्मरणीय युद्ध।
लेकिन से हुए युद्ध वाली किसी और दिन... 😋
एक इंटरव्यू में रविन्द्र जैन की श्रीमती दिव्या जी ने बताया था कि पहले एपिसोड में, आप राजा दशरथ को भगवान राम को जो खीर खिलाते हुए देखते हैं, सागर जी ने उनके लिए वही भेजा था।

और शूटिंग के समय ही वो गर्भभती हो गयी थी।
जन्म हुआ था बेटे का जिसका नाम बाद में आयुष्मान रखा गया था ...
रवींद्र जैन का काम के प्रति लगाव इतना था कि फिल्म सौदागर की रिकॉर्डिंग के वक्त उनके पिता की मौत की खबर आई तो भी रवींद्र स्टूडियो से रिकॉर्डिंग पूरी होने के बाद ही गए।

वो अपनी आंखों का इलाज भी नहीं चाहते थे, उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनका संगीत के प्रति फोकस खत्म हो जाएगा।
श्याम सुंदर जी , जिन्होनें बाली और सुग्रीव का रोल निभाया था , २३ मार्च को हम सभी को छोड़ कर अपने मित्र दारा सिंह जी के पास स्वर्ग सिधार गए।

आपको वो किस्सा सुना ही देता हूं , जो अधूरा छोड़ दिया था पिछली बार..
रामायण में सुग्रीव का किरदार निभाने वाले श्याम सुंदर कालानी भी पहलवान थे और उन्होंने भी अपनी बॉडी वेटलिफ्टिंग से ही बनायी थी। वे हमेशा दारा सिंह को चिढ़ाते रहते थे कि कभी मुझसे लड़ कर दिखाओ,पंजा लड़ाओ,कुश्ती करो,मेरी बॉडी देखो कितनी ताकत है मुझमें.....
दारा सिंह जी केवल हंस कर रह जाते थे। उन्होंने तो कभी किसी से ऊंची आवाज तक में बात नहीं की थी तो लड़ना तो बहुत दूर की बात थी।

आवाज तो बुलंद थी ही उनकी इसके बावजूद वे कभी किसी से जोर से नहीं बोलते थे और ना ही उन्हें किसी को नीचा दिखाना पसंद था..
श्याम सुंदर कालानी जी को मालूम ही नहीं था कि वह एक वर्ल्ड चैंपियन को ललकार रहे हैं।
एक दिन जब मज़ाक ज़्यादा हो रहा था तो दारा सिंह जी से कालानी साहब ने कहा कि आज कुश्ती हो ही जाये।
और फिर दारा सिंह जी भी उस दिन मूड में आ गये और उठ खड़े हुए...
शुरुआत हुई कुश्ती की...

दारा सिंह जी के एक ही वार में वह चित हो कर ऐसे गिरे कि लगभग चार दिन तक बिस्तर पर ही रहे।

उस दिन से उन्होंने दारा सिंह जी को चिढाना तो छोड़ ही दिया था साथ ही उनको अपना गुरु भी मान लिया था।
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