#Thread on PASHUPATINATH TEMPLE, Nepal

‘पशुपति' का अर्थ है - पशु मतलब 'जीवन'और 'पति' मतलब स्वामी या मालिक, यानी 'जीवन का मालिक' या 'जीवन का देवता'।

वैसे तो विश्व में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है, एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का।

@LostTemple7
दोनों ही मंदिर में मुर्तियां समान आकृति वाली है। आज हम नेपाल में स्थित पशुपति मंदिर के बारे में बात करेंगे।

नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। इसे केदारनाथ मंदिर का आधा भाग भी माना जाता है।
पशुपतिनाथ मंदिर बागमती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर को हिंदू वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति माना जाता है। मुख्य मंदिर में एक इमारत है जिसमें सुनहरे शिखर हैं। यह आकार में घन है और चार मुख्य दरवाजे चांदी की चादर में ढंके हुए हैं। इसके अलावा सोने से ढके शुद्ध तांबे से दो
मंजिला छत का निर्माण किया गया था। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है शिवलिंग और शिव की बैल की विशाल स्वर्ण प्रतिमा नंदी।

पाशुपत संप्रदाय के इस मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है किन्तु कुछ जगह पर यह उल्लेख मिलता है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने
तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।पर बाद में मल्ल राजाओं द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।पशुपतिनाथ मंदिर का मुख्य परिसर आखिरी बार 17वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था, जो दीमक के कारण जगह-जगह से नष्ट हो गया था। मूल मंदिर तो न जाने कितनी बार नष्ट हुआ, लेकिन मंदिर को नरेश
भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में वर्तमान स्वरूप दिया।

इस मंदिर की सबसे अनोखी बात ये है, यहां स्थापित शिवलिंग 6 फीट ऊंचा व पंचमुखी है। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर देख रहा मुख वामवेद है, तो दक्षिण दिशा वाले मुख
को अघोरा कहते हैं।इन मुखों को चार धर्मों व हिंदू धर्म के चार वेदों के चिन्हों के रूप में वर्णित किया जाता है। इसके ऊपर के भाग को ईशान कहा जाता है।ये चारों चेहरे तंत्र-विद्या के चार बुनियादी सिद्धांत भी हैं। माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था और
इससे कई पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं-

1. एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले बैठे थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें काशी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता हैं इस दौरान उनका
सींग चार टुकडों में टूट गया था। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे।

2. इस कथा के अनुसार, हर दिन एक गाय इस विशिष्ट स्थान पर जाती थी और जमीन पर अपना दूध चढ़ाती थी। गाय के मालिक ने उसे एक दिन देखा और संदेह हो गया। इसलिए, उन्होंने उस स्थान को खोदा और
भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग पाया। धीरे-धीरे अधिक से अधिक लोग पूजा करने के लिए शिवलिंग के आसपास एकत्र हो गए और भगवान पशुपतिनाथ लोकप्रिय हो गए। जब से यह स्थान एक तीर्थस्थल बन गया।

3. इस कथा के अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है। कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण
के समय शिवजी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे
पशुपतिनाथ कहा जाता है।

पशुपति को भगवान शिव का मानव रूप माना जाता है और यहाँ मौजूद पंचमुखी प्रतिमा को अधूरी प्रतिमा के रूप में देखा जाता है जो कमर से नीचे पृथ्वी में धसी है। माना जाता है की हर साल यह मूर्ति कमर से ऊपर उठती है और यह भी माना जाता है कि अगर ये मूर्ति पूरी ऊपर उठ गई
तो दुनिया नष्ट हो जाएगी।

यहां के पुजारियों को भट्ट कहते हैं। भट्ट कर्नाटक के उच्च शिक्षित वैदिक ब्राह्मण विद्वान हैं। वेद और शिव आगमों पर कड़ी परीक्षा से गुजरने के बाद पशुपतिनाथ मंदिर के राज गुरु द्वारा पुजारी के लिए चुने जाते है।इस मंदिर की अनूठी विशेषता यह है कि केवल 4 भट्ट
पुजारी ही देवता को छू सकते हैं। मंदिर के वर्तमान भट्ट पुजारी हैं।और तो और इस मंदिर में केवल हिंदुओं को प्रवेश दिया जाता है। अन्य धर्म के लोगों मुख्य मंदिर को छोड़कर मंदिर के किसी भी भाग में जा सकते हैं।

एक चौका देने वाली बात ये भी है की 25 अप्रैल 2015 में नेपाल में आए भूकंप के
कारण आसपास की कई सरंचनाएं और यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल पयर्टन स्थल धूल में बदल गए। लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर पर कोई आंच तक नहीं आई और मंदिर आज भी वैसा ही तना खड़ा है। दीवारों पर बस कुछ दरारें दिखाई देती हैं। स्थानीय लोग इसे दैवीय शक्ति का संकेत मानते हैं जबकि अन्य लोग
तर्क देते हैं कि मंदिर की वास्तुकला और मजबूत आधार मुख्य कारक हैं जिन्होंने पशुपतिनाथ मंदिर को भूकंप के प्रभावों का सामना करने में मदद की।
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