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कोणार्क सूर्य मंदिर भारत का सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध सूर्य मंदिर, जो की अपनी अद्भभुत खूबसूरती की वजह से भारत के 7 आश्चर्यों में शामिल है, ओड़िशा राज्य में पूरी जिले के कोणार्क कस्बे में स्थित है। ये मंदिर जितना भव्य है उतना ही इसका दुखदायी इतिहास है।
@LostTemple7
कोणार्क शब्द कोण और अर्क से मिलकर बना है, जहां कोण का अर्थ कोना-किनारा एवं अर्क का अर्थ सूर्य से है। अर्थात सूर्य का कोना जिसे कोणार्क कहा जाता है।यह मंदिर एक बेहद विशाल रथ के आकार में बना हुआ है। इसलिए इसे भगवान के रथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
अगर इतिहासकारों की माने तो इस प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण पूर्वी गंगा राजवंश के प्रसिद्धि सम्राट नरसिम्हा देव ने 1243-1255 ईसवी  के बीच करीब 1200 मजदूरों की सहायता से 12 सालों में बनवाया था।

दरअसल अफगान शासक मोहम्मद गौरी के शासनकाल में 13वीं शताब्दी में जब मुस्लिम शासकों ने
भारत के उत्तर पूर्वी राज्य एवं बंगाल के प्रांतों समेत कई राज्यों में जीत हासिल की थी, तब उस समय हिन्दू शासन नष्ट होने की कगार पर पहुंच गया और ऐसी उम्मीद की जाने लगी कि उड़ीसा में भी हिन्दू सम्राज्य खत्म हो जाएगा।

पर इस स्थिति को भापते हुए नरसिम्हादेव ने मुस्लिम शासकों से लड़ने
का साहस भरा और उन्हें सबक सिखाने के लिए उन शासकों के खिलाफ आक्रमण कर दिया।

वहीं उस दौरान दिल्ली  के तख़्त पर सुल्तान इल्तुतमिश बैठा हुआ था, जिसकी मौत के बाद नसीरुद्दीन मोहम्मद को उत्तराधिकारी बनाया गया था और तुगान खान को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
फिर 1243 ईसवी में नरसिम्हा देव १ और तुगान खान के बीच काफी बड़ी लड़ाई हुई।इस लड़ाई में नरसिम्हा देव ने दुश्मन सेना पर जीत हासिल की। नरसिम्हा देव  सूर्य देव के बहुत बड़े उपासक थे, इसलिए उन्होंने अपनी जीत की खुशी में सूर्य देव को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर बनाने का फैसला लिया।
लेकिन 15वीं शताब्दी में मुस्लिम सेना ने लूटपाट मचा दी थी, तब मंदिर के पुजारियों ने यहाँ स्थापित सूर्य देवता की मूर्ति को पुरी में ले जाकर सुरक्षित रख दिया, लेकिन पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर पर रेत जमा होने लगी और यह पूरी तरह रेत से ढँक गया था।
20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत हुए रेस्टोरेशन में सूर्य मंदिर दुबारा खोजा गया।

वही अगर पौराणिक कथा की माने तो भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्बा ने एक बार नारद मुनि के साथ बेहद बुरा बर्ताव किया था, जिसकी वजह से उन्हें नारद जी ने कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया था।
इस श्राप से बचने के लिए सांबा ने चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के पास करीब 12 सालों तक सूर्य देव का कठोर तप किया था।इसके बाद एक दिन जब सांबा चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्हें पानी में भगवान सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसके बाद उन्होंने इस मूर्ति को
इसी स्थान पर स्थापित कर दिया, जहां पर आज यह विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर बना हुआ।

* कोणार्क मंदिर का निर्माण रथ के आकार में किया गया है जिसके कुल 24 पहिये है। रथ के एक पहिये का डायमीटर 10 फ़ीट का है और रथ पर 7 घोड़े भी है।
* सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे
पूर्व दिशा की ओर जाते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियाँ दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं।
* काले ग्रेनाइट और लाल बलुआ पत्थर से बना यह एकमात्र ऐसा सूर्यमंदिर है, जिसे खास बनावट और भव्यता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस अद्भुत मंदिर के निर्माण में कई कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।
काले ग्रेनाइट से बने होने के कारण इसे पुर्तगाली black pagoda बोलते थे ।
* मंदिर की संरचना और इसके पत्थरों से बनी मूर्तियां कामोत्तेजक मुद्रा में हैं, जो इस मंदिर की अन्य विशेषताओं को बेहद शानदार ढंग से दर्शाती हैं।
* इस सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में बनी तीन-अलग-अलग मूर्तियां भी बनी हुईं हैं, जिन्हें उदित सूर्य, मध्यांह सूर्य और अस्त सूर्य भी कहा जाता है।

* इसे युनेस्को द्वारा सन 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
* माना जाता है कि कोणार्क मंदिर में सूर्य की पहली किरण सीधे मुख्य प्रवेश द्वार पर पड़ती है। सूर्य की किरणें मंदिर से पार होकर मूर्ति के केंद्र में हीरे से प्रतिबिंबित होकर चमकदार दिखाई देती हैं।

* मंदिर में ऊपरी भाग में एक भारी चुंबक लगाया गया था और इस मंदिर में प्रत्येक दो
पत्थरों के बीच में एक लोहे की चादर लगी हुई है। मंदिर की ऊपरी मंजिलों का निर्माण लोहे की बीमों से हुआ है ।वैज्ञानिक मानते है कि चुम्बक मंदिर का संतुलन बनाए रखता था।

* पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य मंदिर के शिखर पर 52 टन का चुंबकीय पत्थर लगा हुआ था। एक समय ऐसा भी था जब मंदिर
अंग्रेजों के काल में जब उन्हें नुकसान होने लगा तो उन्होंने मंदिर के अंदर लगे इस चुंबक को निकाल दिया। इससे मंदिर का संतुलन बिगड़ गया और मंदिर की कई दीवारें और पत्थर गिर गए।

* चुम्बक हटने के कारण ये मंदिर खण्डित हो गयी और हिन्दू मान्यताओं के हिसाब से किसी भी खंडित मूर्ति अथवा
मंदिर की पूजा नहीं कि जाती तो इस कारण इस मंदिर में पूजा नही की जाती।

* कोणार्क के बारे में एक मिथक और भी है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की माने तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहाँ यहां
राजा के दरबार में नृत्य करती थी। इसमें कितनी सचाई है ये तो भगवान ही जाने।

* तीन मंडपों में बंटे इस मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला ध्वस्त हो चुके हैं और अब उनका ढांचा ही शेष है।इसके बीच के हिस्से को जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर कहते हैं।इस वक्त इसे स्टील के सैकड़ों पाइपों का
सहारा दिया गया है। जगमोहन मंडप पिछले 119 साल से बंद पड़ा है।उसे पर्यटकों के वास्ते खुलवाने की विशेषज्ञों की कोशिशों ने अब उम्मीद बंधा दी है।
* मुगल काल में कई हमलों और प्राकृतिक आपदाओं के चलते मंदिर को खराब होता देख 1901 में तत्कालीन गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों
दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह से रेत से भर दिया गया।इस काम में तीन साल लगे। उसके बाद कई विशेषज्ञों ने कुछ मरम्मत और दूसरे सुझावों के साथ बालू हटाने और मंदिर खोलने की सिफारिश की।

* एक रिपोर्ट में दावा है की अगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण चाहे तो कोणार्क मंदिर ठीक
वैसा ही हो सकता है, जैसा कि 112-115 साल पहले था।केंद्र सरकार की इच्छाशक्ति इसे भव्य रूप दे सकती है।" ये रिपोर्ट मंदिर ट्रस्ट ने 2016 में दिया था ।

भारत ने अनेक मंदिर खोए हैं, हम उम्मीद करते हैं की सरकार इस मंदिर को पहले जैसा भव्य बनाने में सफल रहेगी ।
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