जीवन का उद्देश्य क्या है?

क्या कोई उद्देश्य है भी, या यह ख्याल कि हम किसी खास मक़सद के लिए बने है, हमारे श्रेष्ठता के एहसास से जन्म लेता है?

क्योंकि भगवान यक़ीनन हम पर निर्भर तो नही है अपनी किसी भी ज़रूरत के लिए।

कुछ लोगों ने प्रयास किया है इस जटिल पहेली को सुल्झाने का।..

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किसी ने बताता कि जिस कला मे हम कुदरती अच्छे हैं, वही एक रुहानी इशारा है हमारे दुनियावी मक़सद का।

तो किसी ने कहा कि खुश रहना ही इक्लौता प्रयोजन है जीवन का।

इन जवाबों ने कुछ पल की राहत तो दी, पर उतने ही पेचीदा नए सवाल खड़े कर दिए।

2
जिस काम मे हम अच्छे हो, उसकी बाज़ार या समाज मे कोई अहमियत ही न हो तो?

और भला विपरीत परिस्थिति मे खुश कैसे रहें?

जब थक हार के बैठा, तो हर जवाब सामने रखा मिला। इस्लाम मे। सरल और संतोषप्रद।

हमें अल्लाह ने दो ज़िम्मेदारियां दी है। दीन और दुनिया।

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दुनिया - यानी शिक्षा, सेहत, पैसा, दोस्त, रिश्तेदार, समाज और मुल्क के लिए हमारे कर्त्तव्य।

और दीन - यानी इबादत और दा& #39;वाह (Da& #39;wah) (इस्लाम का निमंत्रण)

दुनिया मे खुशी कामयाबी से मिलती है। यहाँ ज्ञान और मेहनत के साथ भाग्य की भी भूमिका है।

4
भाग्य हमारी सोच का प्रतिबिंब है। शांत, आनंदित और प्रेम भरे मन मे अच्छे विचार आते हैं। अंतर्ज्ञान का ज़रिया है पाक दिल।

तो अल्लाह ने हमसे वादा किया कि तुम भाग्य और हालात का तनाव मुझे दे दो, केवल अच्छी और बड़ी सोच रखो, मै मदद करूंगा। इस समाज/बज़ार मे कामयाबी तुम्हारे कदम चूमेगी।
5
और हुक्म दिया कि तुम मेरी इबादत करो, और दीन मे लोगों को दावत दो। यदि तुमसे कोई पाप हो जाए, तो मुझसे माफी मांगो, मैं माफ करने वाला हूँ, प्यार करने वाला हूँ। पर कभी मन मे दोष भाव मत रखो।

इस्लाम ने दो विरोधी उद्देश & #39;रुहानी सुख& #39; और & #39;दुनियावी कामयाबी& #39; के लिए एक ही रास्ता बताया है।

6
रहा सवाल कि हम श्रेष्ठ है या नही, अल्लाह कहता है कि हम उसके अशरफुल मख़लुक़ात है। उसके सबसे प्रिय हैं।

हमारे जीवन का उद्देश्य यदि उसकी इबादत होगा, तो उसका उद्देश्य हमारी खुशी और कामयाबी होगा। यह उसका वादा भी है और शर्त भी।

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