वो केरल का पहला जिहाद :::::::----::::::
1921 मे जो मालाबार विद्रोह हुआ था, वो केरल में हुआ पहला जिहाद था, इनमें बड़े पैमाने पर हिंदुओं का नरसंहार हुआ था।
तुर्की में खलीफा की गद्दी छीन जाने के बाद भारत में खिलाफत आंदोलन की सुरुआत हुई थी.
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मौलाना मुहमम्द अली और मौलाना शौकत अली के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन दक्षिण ऐसिया तक फैल गया.उनके नेतृत्व में मौलाना अबुल कलाम आजाद,डॉ मुख्तार अहमद अंसारी,शेख शौकत अली सिद्दीकी, सय्यद अताउल्लाह शाह बुखारी और अन्य कई सारे मुस्लिम नेता तुर्क साम्राज्य के समर्थन में एकजुट हो गए थे
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जब भारत मे 1919 मे खिलाफत आंदोलन हुआ था, असल मे 1908 मे तुर्की में खलीफा पद खत्म कर दिया गया।जब दूसरा विश्वयुद्ध सुरु हुआ तो ब्रिटेन ने तुर्की पे हमला कर दिया. इसके अलावे भारत मे भी जलियांवाला बाग हत्याकांड और रौलट एक्ट जैसी कई चीज़ें हुई,जिससे लोगो मे और असन्तोष हो गया।
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मुस्लिम अंग्रेजों की वजह से और नाराज हो गए थे, गांधी ने इसको असहयोग आंदोलन से जोड़ दिया, जबकि उस समय मुस्लिम नेताओं को आजादी की लड़ाई से कोई लेना देना नही था।हां ये जरूर था कि गांधी, नेहरू और मौलाना आजाद ने भी खिलाफत आंदोलन की वकालत की थी।
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लेकिन इस खिलाफत आंदोलन के दौरान केरल में एक दर्दनाक घटना घटित होती है, केरल का मुस्लिम अंग्रेजो के विरोध के नाम पे केरल के हिंदुओं का कत्लेआम सुरु कर दिया गया।यानी मालाबार के ऐरनद और वल्लुवानद तालुका मे मोपलाओं ने 1920 में विद्रोह कर दिया.
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मोपला केरल के मालाबार छेत्र मे रहने वाले इस्लाम धर्म मे धर्मान्तरित अरबी और मलयाली मुसलमान थे।अधिकांश मोपला छोटे किसान या व्यपारी थे, उनपर काजियों और मौलवियों का प्रभाव था, जिन्हें थंगल कहा जाता है.
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ये मोपला मालाबार के उच्च जाति के हिन्दू नंबूदरी और नायर भूस्वामियों के बटाईदार और काश्तकार थे,इन्होंने मौके का फायदा उठा लिया।सुरुआत मे तो ये विद्रोह अंग्रेजों के हिंन खिलाफ था.इसे गांधी शौकत अली, मौलाना आजाद जैसे नेताओं का सहयोग था।इसमें बड़े नेता के तौर पे ली मुसलियार थे।
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15 फरवरी 1921 का दिन था, अंग्रेज सरकार ने पूरे इलाके मे निषेधाज्ञा लागू करवा दी.खिलाफत आंदोलन के नेता याकूब हसन,यु गोपाल मेनन,पी मोइनुद्दीन कोय और के माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया। नेतृत्व के बिखरते हीं आंदोलन स्थनीय मोपलाओं के हाँथ से चला गया।
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मोपलाओं ने खिलाफत आंदोलन की खीज भूसवामियों पर उतारनी सुरु कर दी।एकजुट हुए मोपलाओं ने भूस्वामियों के खिलाफ ही हल्ला बोल बोल दिया,ऐसे में आंदोलन ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया और जो आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ था, वो हिन्दू बनाम मुस्लिम हो गया.
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कहा जाता है कि मोपला विद्रोह के दौरान हजारों हिंदुओं का कत्लेआम हुआ और हजारों हिंदुओं को धर्म बदलने के लिए बाध्य होना पड़ा। मजहबी उन्माद मे सैंकड़ो हिन्दुओ की नृशंस हत्या कर दी गयी. उन्हें इस्लाम अपनाने या मौत चुनने का विकल्प दिया गया. हजारों का मतांतरण किया गया,
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गैर मुस्लिम महिलाओं का अपहरण कर बलात्कार किया गया, संपत्ति लूटी या तो नष्ट कर दी गयी.
हिंदुओं पे को अत्याचार हो रहा था काफी समय तक उसकी खबरे पंजाब में प्रकाशित नही हुई.हां मुम्बई के समाचार पत्रों में कुछ खबर छापी जा रही थी,
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लेकिन उस समय का तथाकथित सेक्युलरिजम लोगो को यह कहकर गुमराह कर रहा था कि यह काम हिंदु और मुस्लिम के बीच परस्पर मेलजोल की खाई खोदने के लिए के लिए किया जा रहा है.
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इस मजहबी तांडव की खबर बम्बई से दीवान राधाकृष्ण जी ने समाचारपत्रों को इक्क्ठा कर पंजाब रवाना किया तो यहां लोगों के हृदय हील उठे.
16 अक्टूबर 1921 शिमला में आर्य समाज का अधिवेशन हुआ और उसमें सभी के द्वारा नम आंखों से एक प्रस्ताव
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पारित किया गया जिसका उद्देश्य था कि केरल के इलाके मालाबार मे मुसलमानों द्वारा जो अत्याचार करके हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाया गया , उन्हें फिर शुद्धि करके उनके मूल धर्म मे वापिस लाया जाए.प्रस्ताव के अनुसार यह अपील भी प्रकाशित की गई कि जितना शीघ्र हो सके कि
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पीड़ित का उचित खर्च भी उठाया जाए ताकि कोई हिन्दू जबरन अपने धर्म से पतित न किया जाए।
स्वामी श्रद्धानंद की सहमति से आर्य समाज के पदाधिकारियों ने कार्य करना आरंभ किया ,पंडित ऋषिराम जी को 1 नवम्बर को मालाबार भेज गया,अक्टूबर मास में 371 रुपये दान प्राप्त हुआ.
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अंतः उन रुपयों और अपने बुलन्द हौसलों के बल पर आर्य समाज के वीर सिपाही मोपला विचारधारा से लड़ने निकल पड़े. नवम्बर मास तक वहां हिंदुओं को एकत्र करने का कार्य जारी रहा. लेकिन इसमें एक अच्छी खबर ये थी कि आर्य समाज से जुड़े सभी लोगों ने केरल के पीड़ित समाज के लिए
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अपने खर्चो से कटौती कर 1731 रुपये और भेजा। उस समय लाहौर से प्रकाशित अखबार प्रताप ने लोगों के मन को हिला डाला और आर्य समाज के इस कार्य के लिए प्रताप अखबार ने जो अलख पूरे पंजाब प्रांत में जगाई वो अपने मे भारतीय पत्रकारिता की सुंदर मिशाल है.
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केरेल के हालत पर सभाएं आयोजित कर रहे ठहे.
मलबत की दशा यह थी कि घरों से भागे हिंदुओं के खेत खाली पड़े थे, कुछ घर जले थे और कुछ जले घरो का समशान बना था. 12 अक्टूबर 1922 तक आर्य समाज से जुड़ा बच्चा बच्चा तन मन धन से इस पावन कार्य मे सहयोग करने लगा।
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जिस कारण वहां 70 हजार 911 रुपये खर्च किये जा चुके थे. लगभग तिन्हजर से ज्यादा लोगों की शुद्धि कर उन्हें वापस अपने धर्म मे लाने का कार्य हो चुका था।
मालाबार से कालीकट भागे हिंदुओं को वापिस बसाया जाने लगा।
जिन हिन्दूओ को जबरन मुस्लिम बना दिया गया था ,
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उन्हें वापस हिन्दू धर्म मे लाया गया।
इस आंदोलन के दौरान ही इसके नेता स्वामी श्रद्धानंद जी को 23 दिसंबर 1926 को उनके हीं आश्रम में गोली मार दी गयी .
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समाप्त 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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