“वो भारत की कम पढ़ी-लिखी पीढ़ी”
जो हम सबको बहुत डाँटती थी -
कहती थी!👇
“पानी को व्यर्थ मत बहाओ ...घर में बरकत नहीं होगी”

“अन्न नाली में न जाए, इससे अच्छा किसी के पेट में पड़ जाए”

“सुबह-सुबह तुलसी पर जल चढाओ, बरगद पूजो, पीपल पूजो,आँवला पूजो,”

“मुंडेर पर चिड़िया के लिए पानी रखा कि नहीं?”

“हरी सब्जी के छिलके गाय के लिए अलग बाल्टी में डालो।”
“अरे कांच टूट गया है। उसे अलग रखना,
कूड़े की बाल्टी में न डालना, कोई जानवर मुँह न मार दे।”
यह पीढ़ी इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी पर पर्यावरण की चिंता करती थी"

"क्योंकि वह शास्त्रों की श्रुति परंपरा की शिष्य थी"
और वर्तमान पीढ़ी चार किताबें ज्यादा पढ़ कर उस पीढ़ी की आस्थाओं को कुचलते हुये धरती को विनाश की कगार पर ले आये और समझते है,
हम"आधुनिक" हो गये हैं ?

या यूं कहें कि वर्तमान पीढ़ी ज्यादा पढ़-लिख कर भी अनपढ़ ही रही...?

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