मेरा क्या है??
मेरे पास क्या है??
मेरा कौन है??
बोहोत सोचा इस सवाल के जवाब को!
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ना अहम, ना माया,ना मित्र ना शत्रु, ना घर, ना परिवार, ना प्रेमी, ना प्रेमिका.. कोई नही मेरा.. सब अपने स्वार्थ से हैं कुछ शुभ के लिए तो कुछ अशुभ के लिए पर मेरा कोई नही इनमें..

बोहोत सोचा मेरा कौन है
पैसा जब तक है, दुनिया जीवित आई लगती है फिर उसके खत्म होते ही दुनिया लुटेरी और दुश्मन हो जाती है.. मेरा कौन है फिर?
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लोगो की पत्नियां और पति भी एक दूसरे से स्वार्थ करते है, पुत्र पिता और माता का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वार्थ है.. फिर मेरा कौन है?
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कौन है?
गहराई से सोचने पर ये स्पष्ठ होता है कि "मेरा केवल कृष्ण है।"

वो प्रत्यक्ष ना होकर जब मैंने पैदा लेने की कल्पना की तो मेरे भोजन कि व्यवस्था मेरे आने से पहले की,जब जब मुझे कष्ट हुआ तो मेरे हित अहित को सोचकर उसने मुझे असत्य से बचाये रखा।

मेरा मुश्किल घड़ी में भी अहित न होने दिया!
निश्चय ही मेरा अपना केवन कृष्ण है, जो मेरे अंदर हॄदय में है, वो सब जनता है, मुझे सच और झूठ का फर्क बताता है, रोकता है, कई बार मेरे मन के काम बिगाड़ भी देता है मेरे हिट के लिए, मेरी भली बुरी बातें भी सुनता है.. वो परमेश्वर होकर भी मुझसँग कदम से कदम मिलाकर चलता है.. मेरा वही है।
जब तक किसी मे कृष्णतत्व होता है मुझसे मिला देता है और जैसे अहंकार, क्रोध, वासना का विस्तार मेरे किसी मित्र में होता है उसे वो स्वतः ही मुझसे दूर कर देता है, निश्चय ही मेरा वही है।

जो मुझे , धन, मेरे गुण और मेरे रंग रूप से मुझे जाने भला वो मेरा कैसे हो सकता है?...
जो कृष्ण को सुन्दर, मनमीत, प्रेमी, विलासी, ताकतवर, राजा और अन्य राजसिक और तामसिक गुणों के कारण प्रेम या पूजा करे वो कृष्ण का कैसे हो सकता है?? और जो कृष्ण का नही उसका इस जग में कौन है??

कौन है इस जग में उसका जो कृष्णहीन है?
जो अपने नाम के लिए जीत है उसका अहम है जो उसे धीरे धीरे मारता है!

जो अपने परिवार से ज्यादा किसी को महत्व नही देता वो अपने परिवार को ही प्राप्त होता है, बड़ा विचित्र है उन लोगो का जीवन, आज जो भाई भाई है और कल वही पुत्र और पिता हो जाते है, ये परिवार समर्पित जीवन में बोहोत दोष है..
जो धन के लिए जीते है वो तो मृत्यु के बाद अतृप्त काल्पनिक धन की कल्पनामय स्वप्न में हजारों साल फसे रहते है। कितना कष्ट और तकलीफ है उन आत्माओं को जो कृष्ण को ना जानकर धन के चक्कर मे जीवन बर्बाद करते है.. धन से अहम, बीमारियां, इलाज, समस्याएं, मानसिक असहजता और ऐशो आराम मिल सकता है..
पर कृष्ण तो नही मिलेग न? तो मेरा कृष्ण है..

मेरे केवल कृष्ण भक्त है जो कृष्णतत्व को जानते हैं, मेरी तो राधा तत्व है, जहाँ भी हो चाहे वो वीरान हो या हो कोई महल, चाहे वो पहाड़ हो या हो कोई जंगल, वो कृष्णतत्व जो हॄदय में हमेशा साँसों के साथ स्पंदित है वो हमेशा मुझे सर्वोपरि रखता है
मेरा इस संसार मे केवल कृष्ण है, बाकी केवल मेरे ही द्वारा अचेतन मन से फैलाई गई माया है ..

हे राधे, हरे कृष्ण।।
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