A THREAD ON TRAITORS OF INDIA
इतिहास पढ़ना बहुत जोखिम भरा काम है।

बचपन से पढ़ा कि राजपूत बिरादरी वचन की पक्की, सच्ची देशभक्त, शूरमा, धार्मिक होती है, तो यह सब पढ़ मन गर्वोन्मत्त हो जाता था। फिर मैंने पढ़ा, खूबऔर जाना कि बेशक राजपूत वैसे ही थे जैसा पढ़ा था,
पर बहुत कुछ ऐसा भी था जो शर्मसार करने के लिए पर्याप्त था। राजपूताना, आज का राजस्थान और उससे लगा इलाका। एक से बढ़कर एक वीर, एक से बढ़कर एक वीरांगनायें। पर देखिए कि समस्त राजपूताना में सिर्फ उदयपुर को छोड़ सब मुगलों के चाकर बन ही गए। अकबर के बारे में अब बहुत कुछ कहा जाता है,
पर मेरी नजर में वो एक अच्छा शासक रहा होगा। अकबर जैसे बादशाह की चाकरी में बहुत बुराई नहीं दिखती पर इन राजपूतों ने धर्मात्मा दाराशिकोह के स्थान पर मलेच्छ औरंगजेब का साथ दिया था। दाराशिकोह ऐसा वलीअहद था जो खुलेआम हिंदवी जुबान बोलता था, जिसने अपनी अंगूठी और कटार पे 'प्रभु' गुदवाया था
यह दराशिकोह है👇
जिसका सारा समय संस्कृत और फ़ारसी की पुस्तकें पढ़ने और संस्कृत पुस्तकों का फ़ारसी में अनुवाद करने में बीतता था। जिस लैटिन भाषा की पुस्तक 'औपनिखत' को पढ़ ऑर्थर शोपेनहार, जोहान फ़िक़्ते, पॉल दुसान और नीत्शे सहित समस्त आधुनिक संसार भारत के प्रति आध्यात्म के क्षेत्र में आकर्षित हुआ ।
वह और कुछ नहीं 'उपनिषदों' का फ़ारसी अनुवाद था जिसे दारा शिकोह ने करवाया था। इस दारा शिकोह ने अपने खजाने से गुजरात में जैन मंदिर बनवाया और मथुरा के मंदिर में सोने का कटघरा लगाया। कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर जाइए, और देखिए कि मंदिर से सटी हुई एक मस्जिद किस तरह आपके सीने पर पददलित 👇
होने का भाव पैदा करती है।वो मस्जिद उसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई है जिसमें दाराशिकोह ने सोने का कटोरा लगवाया था और तुड़वाने वाला औरंगजेब था जिसे राजपूतों ने और मथुरा के जाटों ने समर्थन दिया था।
महाराज जसवंत सिंह , राठौरो के राजा जिन्हें दराशिको की तरफ से लडने के लिए भेजा था वह युद्ध को पीठ दिखा कर भाग गए। जसवंत सिंह जिन्हें अपनी सेना सहित दारशिकोह के बेटे सिपर शिकोह का साथ देना था उन्होंने अपनी सेना को रोक के रखा।मिर्ज़ा जयसिंह ने तो अपनी बहन ही ब्याही थी
औरंगजेब से इन दोनों की गद्दारी की वजह से औरंगजेब जैसा क्रूर शासक बना जिसने तमाम हिन्दुओं के विरूद्ध जिहाद पुकारा। मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने अतुलनीय शोर्य दिखाते हुए कई लड़ाईया
जीती लेकिन अपने जीजा औरंगजेब के लिए।काश ये शौर्य वह किसी हिन्दू राजा के समर्थन में दिखाते।
लेकिन अपने शौर्य को उन्होंने शिवाजी महाराज को हराने में लगाया और एक संधि कि जिसमें उन्होंने औरंगजेब के राज्य में छत्रपति शिवाजी महाराज को दिलाई ,जिसके बाद ही अग्रा का कांड हुआ।जब महाराज ने औरंगजेब को अपना रुद्रावतर दिखाया।
मराठा ओ की वीरता और देशभक्त के बारे में क्या कहना लेकिन गद्दार इनमें भी थे,अपने ही परिवार से संबंधित शिर्के घराने की शत्रुता की वजह से महाराज को पकड़ा गया ,इस्लाम कबूल करने से मना किया उन्होंने तो ऐसे ऊंट पे बिठाया जिसपे किले लगी हुई थी,ऊंट की पूंछ को हिलाया जाता था
जिससे ऊंट परेशान होकर हिलाता था और किल चुभने से अनंत यातना होती थी,हाथ ,पैर आंखे एक एक करके उखाड़ ली गई उनकी लेकिन महाराज ने धर्म नहीं त्यागा।
पानीपत के युद्ध में सदाशिव भाऊ की गलतियां बताने वाले अनंत इतिहास कार है लेकिन ये काम ही लोग बताएंगे की मराठाओं
का वर्चस्व सहन ना होने के कारण राजपूतों ने ही अब्दाली को बुलाया था,और इस लड़ाई में अब्दाली से भिड़ने वाले मराठाओं का साथ किसी जाट ,राजपूत और सीख राजा ने नहीं दिया,
पानीपत में मराठा की हार हुई थी ये बताया जाता है क्योंकि सदाशिव भाऊ का सर काटा गया था लेकिन
सत्य ये है कि दोनों सेना ओ का समान नुकसान हुए था।अवध का नवाब सुजाशह शिया जिसके बाप को मराठों ने ही संरक्षण दिया था। भाऊ को उम्मीद थी कि अफगानों के विरूद्ध नवाब उनका साथ देंगे लेकिन ये नहीं हुआ नवाब की सेना में हिन्दू बैरागियों की एक टुकड़ी भी थी।
एक हिन्दू राजा के मुस्लिम आक्रांता से हारने की जैसे खुशी हो रही थी सबको।
गद्दार आज भी है ,राजनीतिक पार्टियों में,सरकारी संस्थानों में,मीडिया में ,शिक्षा व्यवस्था में जो अपने लोगो को दूसरे से हारते देख खुशी मनाते है।
इतिहास से अब भी ना सीखे तो कभी नहीं सीखेंगे
🙏🙏🙏
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