और अब इसी बात को आगे बढ़ाते हुए ये भी जानने की कोशिश करते हैं कि रावण की लंका आखिर थी कहां ?

क्या श्री लंका ही असली लंका है?? https://twitter.com/wh0mi_/status/1053291502045081600
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर हीरालाल शुक्ल की माने तो रावण की लंका गोदावरी के डेल्टा पर स्थित थी जहां गोदावरी समुद्र में मिल जाती है आंध्रप्रदेश का दौलेश्वरम् वह स्थान है,जहां गोदावरी ७भागों में विभाजित होकर समुद्र में मिल जाती है वहीं पर एक द्वीप बनता है जिसे हीरालाल लंका कहते हैं।
शुक्ल जी का कहना है कि श्रीलंका रावण की लंका नहीं है। वो ज़ोर देकर लंका और सीलोन को अलग मानते हैं। वोअपने शोध में कहते हैं कि आज का सिंहल द्वीप ही श्रीलंका है जिसे लंका नहीं कहा जा सकता। रावण सिंहल या श्रीलंका का नहीं, लंका का राजा था और यह लंका गोदावरी नदी के मुहाने पर थी।
हीरालाल जी के कहे अनुसार पुराणों में लंका और सिंहल का पृथक उल्लेख मिलता है। दशरथ के काल में सिंहल का राजा चन्द्रसेना था, रावण नहीं। वाल्मीकि रामायण ४.४१ के अनुसार रावण के कथानुसार लंका प्रवेश के लिए ताम्रपर्णी नदी को पारकर महेन्द्रगिरि के दक्षिण में चलना पड़ता था।
और अगर सीलोन को अगर लंका मानें, तो वहां पहुंचने के लिए ताम्रपर्णी नदी नहीं पार करना पड़ती है।
हीरालाल कहते हैं कि यह भ्रम तुलसीदास के काल में फैला कि आज का सिंहल या सीलोन ही रावण की लंका है।
किन्तु फिर सवाल ये भी उठता है कि तुलसीदास ने तो रामायण और रामायण से संबंधित अन्य कई रामायण पढ़कर ही रामचरित मानस लिखी थी। वे भी तो खोजकर्ता और शोधार्थी थे फिर ऐसे गलती कैसे हुई होगी?
शुक्ल जी के अनुसार यह मान्यता अति प्रबल है कि रामेश्वरम से अतिदूर सीलोन या श्रीलंका ही रावण की लंका है लेकिन असल में रावण की लंका गोदावरी के डेल्टा में थी जिसे ग्रंथों में त्रिकूट कहा गया है।
उनके अनुसार गोदावरी के तट पर जहां गोदावरी गोमती और वसिष्ठी दो भागों में विभाजित हो जाती है वहीं पर समुद्र में इनके विलय से जो द्वीप बना है उसे आज भी लंका कहते हैं जिसे त्रिकूट भी कहा जाता है।
हीरालाल इस कथन को भी झुठलाते हैं कि गोदावरी तट पर स्थित नासिक की पंचवटी रामायणकालीन हैं। वे इस तथ्‍य को नकारते हैं कि जहां लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी उसी के कारण इस स्थान का नाम नासिक पड़ा था।
नासिक के बारे में कुछ और बातें यहां पर मिलेंगी आपको.. https://twitter.com/Shrimaan/status/1176872261871009793?s=09
किन्तु डॉक्टर केन ने शुक्ल जी से पहले सर्वप्रथम सन् १८७६ में संकेत दिया था कि भद्राचलम (खम्मण) के टेकापल्ली तालुका के रेकापल्ली गांव के वासी मानते हैं कि रावण समीपवर्ती एक भूखंड में निवास करता था।
बाद में सुरवरि प्रताप रेड्डी ने तेलुगु ग्रंथ 'रामायण विशेषमुलु' (हैदराबाद १९३०) में अपना मत व्यक्त किया कि लंका कृष्णा और गोदावरी के मध्य कहीं स्थित थी और हनुमान ने संभवत: गोदावरी की किसी शाखा को लांघा था।
फिर सन् १९३२ में पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र ने महाकोशल हिस्टोरिकल रिसर्च सोसायटी के शोधपत्र (बिलासपुर , खंड १ पृष्ठ २०) में संक्षिप्त उल्लेख किया था कि आंध्रप्रदेश के इस क्षेत्र में लंका मानना चाहिए, जो समुद्र तट से संलग्न है।
अब बात करते हैं इंदौर निवासी सरदार एमबी किबे की.. इन्होंने लंका की स्थिति को अमरकंटक में बताया है।इन्होने सन् १९१४ में 'इंडियन रिव्यू' में रावण की लंका पर शोधपूर्ण निबंध में प्रतिपादित किया था कि रावण की लंका बिलासपुर जिले में पेंड्रा जमींदार की पहाड़ी में स्थित है।
किन्तु बाद में उन्होंने अपने इस दावे में संशोधन किया और कहा कि लंका पेंड्रा में नहीं, अमरकंटक में थी।
उन्होंने सन् १९१९ में पुणे में प्रथम ऑल इंडियन ओरियंटल कांग्रेस के सामने एक समीक्षा रखी उन्होंने बताया था कि लंका विंध्य पर्वतमाला के शहडोल जिले में अमरकंटक के पास थी।
किबे ने अपना ये लेख ऑक्सफोर्ड विश्‍वविद्यालय में संपन्न इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ ओरियंटलिस्ट्स के १७वें अधिवेशन और रोम-सभा में भी पढ़ा था। हालांकि उनके दावे में कितनी सचाई है यह अभी भी शोध का विषय है।
ऐसा नहीं है कि किबे अकेले थे जो ऐसा सोचते थे। हरमन जैकोबी और पुलिस अधिकारी गौतम कौल का भी यही मानना था जो कीबे ने कहा था। गौतम साहब पहले रावण की लंका को बस्तर जिले में जगदलपुर से करीब १५० किलोमीटर पूर्व में स्थित मानते थे।
कौल सतना को सुतीक्ष्ण का आश्रम बताते थे और केंजुआ पहाड़ी को क्रौंचवन, लेकिन बाद में उन्होंने रावण की लंका की स्थिति को अमरकंटक की पहाड़ी स्वीकार कर डाला।
इसी तरह जैकोबी ने पहले लंका को असम में माना, किन्तु आखिरकार किबे की अमरकंटक धारणा को उन्होंने स्वीकार कर ही लिया।
कहानी यहां नहीं रुकती है...
रायबहादुर हीरालाल और हंसमुख सांकलिया लंका को जबलपुर के समीप मानने के बाद रायबहादुर भी बाद में किबे की धारणा के पक्ष में हो जाते हैं जबकि सांकलियाजी हीरालाल शुक्ल के पक्ष में हो जाते हैं।
आपने गौर किया कि शुक्ल साहब रायबहादुर साहब थे 🤫🤫
@AniruddhasT
सन् १९२१ में एनएस अधिकारी ने इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप को लंका सिद्ध करने के कई साल बाद सी एम मेहता ने कहा कि श्री हनुमान ने विमान से समुद्र पार किया था और इसलिए एबलंका की खोज ऑस्ट्रेलिया में करनी चाहिए।
वहीं सालों साल पहले सन् १९०४ में अयप्पा शास्त्री राशि वडेकर ने मत व्यक्त किया था कि लंका सम्प्रति उज्जयिनी के समानांतर समुद्र तट से ८०० मील दूर कहीं समुद्र में जलमग्न है।
लंका की स्थिति भूमध्य रेखा पर मानने के कारण वाडेर ने तर्क दिया कि आधुनिक मालदीव या मलय को ही लंका माना जाना चाहिए जबकि टी. परमाशिव अय्यर ने सिंगापुर से लेकर इन्द्रगिरि रिवेरियन सुमात्रा तक व्याप्त भूमध्यरेखीय सिंगापुर को ही लंका घोषित कर डाला था।
क्या आप जानते हैं कि १४वीं सदी में ज्योतिर्विद भास्कराचार्य ने लंका को उज्जयिनी की ही अक्षांश रेखा पर भूमध्य रेखा में स्थित माना था। वही एक विद्वान विष्णु पंत करंदीकर ने लंका को इंदौर जिले में महेश्वर के पास नर्मदा तट पर स्थित घोषित किया था।
हीरालाल शुक्ल माल्यवान पर्वत को रत्नागिरि (महाराष्ट्र), अनागुंदू (मैसूर) या रायचूर में न मानकर बस्तर में तुलसी डोंगरी में मानते हैं। आपको ज्ञात होगा कि माल्यवान पर्वत पर ही राम ने सीता के विरह में कुछ दिन बिताए थे।
शुक्लजी इसी तरह क्रोंचगिरि को शबरी नदी से थोड़ी दूर कोरापुर में स्थित मानते हैं और ऋष्यमूक जहां सुग्रीव ने बाली के भय से अपना निवास स्थान बनाया था, को गोदावरी तट पर उत्तर में स्थित किष्किंधा में मानते हैं।
लेकिन ऋष्यमूक पर्वत तो वाल्मीकि रामायण के अनुसार वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था और यह किष्किंधा कर्नाटक में स्थित है। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में यहीं हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाइ थी, जो एक अटूट मित्रता की मिसाल बन गई।
रामायण अनुसार जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था। और यह ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है।
अब आते हैं किबे साहब पर...
एमबी किबे और उनके अनुयायियों ने रीवा संभाग में कंधों ग्राम को प्राचीन किष्किंधा मानने से इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि गोदावरी और पंपालेख के संगम से थोड़ी दूर पापीकोंडा (पंपा पर्वत) की उपत्यका में स्थित आधुनिक काकीनाडा ही किष्किंधा है।
दरअसल, यह आंध्रप्रदेश का आधुनिक काकीना डा ही है, जो गोदावरी के डेल्टा के पास स्थित है। बाली किष्किंधावासी तो था लेकिन उसकी वानरसेना दंडकारण्य तक छाई हुई थी।
रायबहादुर श्री श्री हीरालाल जी मानते हैं कि वाल्मीकि गोदावरी के दक्षिण में स्थित प्रदेशों से अपरिचित थे। हीरालाल जनाब यह भी कह चुके हैं कि लंका के बारे में भ्रम तुलसीदास के काल में फैला। इसका मतलब तो यही निकलता है कि उनकी नजरों में ये दोनों विद्वान अल्पज्ञ थे।
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हीरा जी का कहना है कि आंध्र में खम्माम जिले में भद्राचलम से ४४ मील दक्षिण पूर्व में स्थित रामगिरि ही रघुवंश में वर्णित रामगिरि है और भद्राचलम से ३ मील दूर एटपक (जटपक) में जटायु का आवास था और दुम्मगुड़ेम में उसने रावण से संघर्ष किया था।
और यह संघर्ष इतना विकराल था ,इतना विशाल था कि धूल के बादल उड़े और गांव का नाम ही दुम्मे (धूल) गुड़ेम (गांव) पड़ गया। वे यह भी कहते हैं कि रावण के रथ के आघात के कारण समीपवर्ती पहाड़ी का नाम रादपु (रथ) गुट्टा (पहाड़ी) पड़ा।
( मै तेलुगु भाषा से परिचित नहीं तो कुछ नहीं कह सकता)
वर्तमान में खम्माम और पूर्वी गोदावरी की सहायक नदी पंपालेरू ही रामायण की पंपा नदी है। शुक्ल के अनुसार शबरी नदी दंडकारण्य में मिलती है, पंपा भी गोदावरी में विलीन होती है। महेन्द्र पर्वत के समीप राजहेंद्र में उसका पाट २ मील और दोवलेश्वर के पास ४ मील चौड़ा हो जाता है।
यहां गोदावरी मुख्यत: २ शाखाओं में विभक्त हो जाती है और यही समुद्र से घिरा हुआ गोदावरी का डेल्टा ही रावण की लंका है। ऐसा लगता है कि गोदावरी के पास ही नल के मार्गदर्शन में सेतुबंध बना था... लेकिन वह सेतु कहां है?

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डॉ. शुक्ल के अनुसार वैद्यराज सुषेण के कहने से सुदूर उत्तर में हिमालय में गंधमादन से जड़ी-बूटी उठा लाए थे। वे समीपवर्ती गंधमादन (पूर्व परिमलगिरि) जो उड़ीसा में संबलपुर और बलां‍गीर की सीमा बनाता है, से लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद औषध ले गए थे।
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