ईश्वर कलाकार हुआ करता था

वो खेलता था रंग और कूँची से
रंगों से भर जाती थीं सुबहें और शामें
तितलियों के परों पे गुलकारी करता
फूलों पे बिखेर देता हज़ारों रंग
सुफ़ेद रंग से बादल रंगता
और चोटियाँ पहाड़ों की
समंदर में घोल के नीला रंग
डुबो के आसमाँ निकाल लेता था
हरी रंगता धरा की चूनर
ईश्वर कवि हुआ करता था

उसने रची शिशुओं की दंतुरित मुस्कानें
गीत लिक्खे प्रेम और विरह के
आनन्द भी लिखा और पीड़ा भी
अध्याय लिखे जन्म और मृत्यु के
पंछियों के गान और नदी की कलकल
सारी धरती को भर दिया संगीत से
धुनें शोक और उल्लास की
धुनें राग और विराग की
फिर एक दिन हमने
उसके सारे रंगों पे
गहरे सलेटी रंग को फैला दिया
सुबह,शाम,फूल,तितली,धरती,आसमाँ
सब के सब धुआँसे हो गए

शायद उसी दिन हमने
छीन लिया संगीत
नदियों, चिड़ियों, हवाओं से
सब के सब बेसुरे हो गए

अब मैं ही ईश्वर हो गया हूँ
रंग और संगीत के बदले
सुनहरी चमक के सिक्के ले लिए हैं
शुक्रिया देवेन्द्र जी ! 💐
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