महात्मा गांधी की हत्या और स्वतंत्र भारत का पहला हत्याकांड!!!
महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों का एक लंबा राष्ट्रवादी इतिहास रहा है। पेशवा से शुरू हो कर गोखले, तिलक, सावरकर, महादेव रानाडे और नाथुराम गोडसे तक…
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महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों का एक लंबा राष्ट्रवादी इतिहास रहा है। पेशवा से शुरू हो कर गोखले, तिलक, सावरकर, महादेव रानाडे और नाथुराम गोडसे तक…
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महात्मा गांधी की हत्या और नाथुराम गोडसे की फांसी के तख्ते पर लटकने की कहानी सभी जानते ही हैं लेकिन इन दोनों घटनाओं के बीच में हुई एक घृणाजनक घटना के बारे में कभी बताया ही नहीं गया, किसी ने कोशिश भी की तो तत्कालीन सरकारों ने ढांक-पिछौडा ही किया। »»
30 जनवरी, 1948 - गोडसे ने भारत के सबसे बड़े नेता की हत्या कर दी। शाम तक यह खबर पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैल गई। पूरा देश शोकमग्न था लेकिन पूणे, मुंबई, कोल्हापुर जैसे शहरों के चितपावन ब्राह्मणों के लिए तीस जनवरी की वह रात तीन दिनों तक चलने वाले दुःस्वप्न से कम नहीं थी। »»
राष्ट्रवादी चितपावन कांग्रेसियों की आंखों में हमेशा से अखरते थे, गोडसे का कृत्य उनके लिए मौका था चितपावनों से बदला लेने का। रात के अंधेरे में सशस्त्र-गांधीवादी कांग्रेसी कार्यकर्ता चितपावन ब्राह्मणों पर टूट पड़े। लोगों को घरों में घुस कर मौत के घाट उतारा गया और संपत्ति लूटी गई! »
यह एक सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया हत्याकांड था जो तीन दिन तक चला। वीर सावरकर के भाई डॉ• नारायण सावरकर को उन्हीं के घर में "LYNCH" कर दिया गया। इस प्रायोजित कुकृत्य में कांग्रेस के लिए चुनौती बने राष्ट्रवादी समुदाय को निशाना बनाया गया। »»
सरकारी फाइलों में इससे जुड़े सभी दस्तावेज या तो नष्ट कर दिए गए या सभी रिपोर्ट और आंकड़ों को बदल दिया गया। अनौपचारिक आंकड़ों के अनुसार 3000 से 8000 लोगों की हत्या की गई और 20000 से ज्यादा घर और कारोबार बर्बाद कर दिए गए। »»
अपने पाप ढांकने के लिए कांग्रेस ने यह अफवाह फैला दी कि चितपावन विदेशी यहूदी हैं, हिंदू ब्राह्मण नहीं। महाराष्ट्र में लोगों को गुमराह किया गया और संचार माध्यमों की कमी के कारण देश के बाकी प्रदेशों तक यह घटना के समाचार ही नहीं पहुंच पाए & ज्यादातर अखबार भी कांग्रेसी संचालित थे। »»
अमरीका के द न्यू-यॉर्क टाइम्स, द वॉशिंग्टन पॉस्ट और सिनसिनाटी पोस्ट ने इन कांग्रेस प्रेरित दंगों की खबर मुखपृष्ठ पर छापी पर भारतीय मिडिया में इस जघन्यतम काले अध्याय की खबरों को पूरी तरह से ब्लेक-आउट कर दिया गया। »»
वीर सावरकर के घर पर भी एक से ज्यादा बार & #39;अहिंसक& #39; गांधीवादियों ने सशस्त्र हमले किए लेकिन वो बचने में सफल रहे। बाद में उन्होंने दुःखी ह्रदय से कहा : मां भारती के सपूत और अपना जीवन समाज के लिए समर्पित करने वाले गांधी के अनुयायियों ने ही महात्मा के विचारों की हत्या कर दी। »»
गांधी की हत्या के परिणाम स्वरूप गोडसे को मृत्युदंड मिला लेकिन हजारों निर्दोषों के साथ गांधी विचारों की हत्या करने वाले कांग्रेसियों पर एक मुकद्दमा भी नहीं चला, सज़ा तो मिलने से रही। गांधीवध ने इस खोखली विचारधारा और सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा दीं। »»